मुसलसल
दर्द पाला है सीने में इस कदर मेहरबां
बुझते इश्क़ में यारा जलते रहे आज तक
न जाने कहां कब जुदा हो गई राहदारी
उसी राह मुसलसल चलते रहे आज तक
रोशनी की खातिर जला बैठे दिल को
वहीं लौ में जानिब पिघलते रहे आज तक
सुबहो शाम तसव्वुर इक तेरा रहा है
ख्यालों में जुगनूं मचलते रहे आज तक
यकीं हो के ना यकीं हो तुम्हे
लम्हा लम्हा तेरे नाम करते रहे आज तक
मुस्कुराते भी है हंस भी लेते हैं हम
तेरे बगैर यारा पल पल मरते रहे आज तक
नम्रता सरन “सोना”