~ रात सुकूँ है ~
ये मेरी आँखें आंसुओं को छिपाए,
ये मेरा बदन, जीवन के बोझ उठाये,
जब आकर बिस्तर पर, कुछ पल लेटता है,
सारे अरमान निकलकर तब,
सिरहाने खड़े हो जातें हैं,
और सपने दिखाने लग जातें हैं, जब
कुछ पल खुशियों के…
तब सोचता हूँ, आखिर ये एहसास क्यूँ है,
बस ये रात .. ये रात ही तो मेरा …… सुकूँ है ।
◆◆©ऋषि सिंह “गूंज”