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17 Jun 2022 · 1 min read

रात चांदनी का महताब लगता है।

यूं तो गुस्ताखियां तमाम करता है,,
शोखियों में ही हर बात करता है,,
धूप में खिलती कलियों सा है वो,,
रात चांदनी का महताब लगता है,,,!!

आज आया जो मेरी गली में वो ,,
तो मोहल्ला त्यौहार सा लगता है,,
अदाओं से वो है अल्हड़ बड़ा ही,,
मुझे मौसम ए बहार सा लगता है,,,!!

जाने क्या कशिश है उसमें जो वो,,
मुझको अपना अपना सा लगता है,,
मरहम है वो मेरे हर ज़ख्म का ही,,
उसको देखकर करार सा लगता है,,,!!

ताज मोहम्मद
लखनऊ

1 Like · 2 Comments · 318 Views
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