रात की रानी.
रात की रानी.
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पान खाकर
होठोम को लाल
बनाकर
फूलों से
बाल सजाकर
रेशम की साड़ी
पहनकर
भाल में सिन्दूर
की बिंदी डालकर
अँधेरे रात में
चली गयी
वह रात की रानी
सुगंध फैलाकर.
लौट रही थी
वो ‘काम ‘के बाद
और गिन रही थी
मज़दूरी का वेतन
और छिप रही
उसे अपनी
चोली के पीछे.
डूब गई
चाँद और चाँदनी.
आ रही थी रवि की
सुनहरी रेशमियाँ.
मुरगे ने कहीं
आवाज़ बनाया
याद दिलाया
की सुबह हो रहा है.
रुक गयी वो
थोड़ी देर पर
सुनकर किसी
कीचीख.
चौंक गयी वह
दृश्य देखकर.
कल रात
उसकी साथ
रहने वाला
करता है
कोशिश इक
बालिका की
मुँह बंद करने का.
स्तब्ध रह गयी वो इक
क्षण भरके लिए.
भिर आगे बढ़ी वह
हवा के जैसे.
बन गयी वह
भद्रकाली की तरह.
चमक रही थी ऑंखें
अग्नि ज्वाला की तरह.
बाहर निकाली
उसने चाकू
अपनी गोदी से.
फिर चिल्लाया जोर से.
“है भगवान
बंद कीजिए ऑंखें.
न्याय करने दो
मुछे अपनी
सिर्फ एक बार.”
काट लिया और
भेंक दिया वह
‘माम्स का टुकड़ा ‘
दूर कहीं.
और भिर ज़ोर से चिल्लाया
“और किसी
लड़की को
नहीं रोना पड़ेगा
तुम्हारे कारण.”
देखा उस ने
इधर उधर
बच्ची को
गोद में लेकर.
नहीं देखा
किसी को कहीं.
याद आयी उसको
अपनी बचपन
और याद आई उन
लोगों की चेहरा.
जिसने उसको
बनायी रात की रानी.
नई ज़िन्दगी की
खोज में निकली माँ
और शराबी पिता और
उनके साथियों और रिश्तेदारों ने
मिलकर उसे
बनायी रात की रानी.
बच्ची को छाती
में लेकर
उसने कहा.
“नहीं छोडूंगी
और कहीं.
नहीं दूँगी मैं
और किसी को.
आजसे मैं हूँ माँ तेरी
किसी की छाया भी
नहीं पड़ेगा तेरेऊपर.
आखिरी सांस लेने
तक बेटी….
रक्षा करूंगी
मैं तुम्हारी.
तन तोड़कर
मेहनत करके.
नहीं हो सकती
हमेशा नारी को
पैरों के नीचे दबाना.
नहीं है वह
आग बुछी राख.