रात की महफ़िल
रात की महफ़िल में थे,कुछ जुगनू,कुछ तारे।
बहुत कुछ हो गया लेकिन तुम न हुये हमारे।
रात की महफ़िल में हम ,क्या रोयें क्या सोयें
पत्थर जैसे बन कर ,बैठे हैं नैन भिगोये।
रात की महफ़िल में देखा,तन्हा थी तन्हाई
बस तेरी याद ही,एक साथ निभाने की।
रात की महफ़िल में देखा शबनम को रोते
कांटों से खाये जख्म ,फूलों को देखा धोते।
रात की महफ़िल में, देखा एक ख्वाब सुनहरा
कौन लगा पाया जग में दिल पे कोई पहरा।
सुरिंदर कौर