रात का विरह गीत
रात का विरह गीत
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प्रेम पाश में मुझे बाँध कर
प्रीत साथ में छल क्यों लाई ?
रात के तन्हा आलम में
रजत चाँदनी चमक रही है।
पूनम चाँद भाल सजा कर
मेरे आँगन बरस रही है।
शीतलता से अगन लगाने-
मुझे जलाने भू पर आई।
प्रीत साथ में छल क्यों लाई?
यौवन से मदमाती रजनी
गीत विरह के हँस कर गाती।
शूल चुभा कर तानों से वह
पुलकित हो मन में मुसकाती।
दर्द लिए सीने में अपने-
मैंने पल-पल रात बिताई।
प्रीत साथ में छल क्यों लाई?
राहत के बदले आँसू दे
तुमने मन पर वार किया है।
बैठ गोद में रोज़ तिमिर की
मैंने तुमको प्यार दिया है।
जान न पाया रीत प्रीत की-
उर में कितनी पीर समाई।
प्रीत साथ में छल क्यों लाई?
पलकों के घूँघट में ढक कर
बदनामी से तुम्हें बचाया।
कितने सागर खार किए तब
मैंने तुमको नयन बसाया।
किससे कहता मन की पीड़ा-
सोच आँख मेरी भर आई।
प्रीत साथ में छल क्यों लाई?
डॉ. रजनी अग्रवाल” वाग्देवी रत्ना”
संपादिका-साहित्य धरोहर
महमूरगंज, वाराणसी। (मो.-9839664017)