रातों में अंधेरा है,
रातों में अंधेरा है,
पर उसमें एक सुकून है,
जहां ख़ामोशियाँ कहानियाँ सुनाती हैं,
और चाँद गवाह बनकर मुस्कुराते हैं।
अंधेरा सिर्फ़ बाहरी नहीं,
मन का भी होता है कभी-कभी,
पर वहीं से शुरू होती है रोशनी की तलाश,
जहां उम्मीद का दीप जलता है।
रात का अंधेरा स्थायी नहीं,
यह एक पड़ाव है सफ़र का,
सुबह का सूरज हमेशा आता है,
अपने साथ नई रोशनी और नई उम्मीदें लेकर।
अंधेरे में भी अगर दिल रोशन हो,
तो हर रात में छुपा होता है एक नया सबेरा।
–श्रीहर्ष —