रातरानी के फूल…
माहताब के ज़रिए, एक-दूजे को देखते रहे हैं
अपने साथ हर वक्त, तुझे हम सोचते रहे हैं…
एक बेचैनी, दोनों के दिलों में रातभर
करवटें बदल के हमतुम, यहाँ जागते रहे हैं…
तेरा ना मिलकर भी मिलना, ऐसा है लगता
कहानियों में जैसे फरिश्ते, आते-जाते रहे हैं…
तेरी अनकही बातें, सुनकर लगता है बार-बार
आईने से जैसे हम, दिनरात बतियाते रहे हैं…
उसकी हँसी, उस चाँदनी रात में ऐसी लगी
रोशनी में जैसे, रातरानी के फूल नहाते रहे हैं…
-✍️देवश्री पारीक ‘अर्पिता’