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15 Jun 2023 · 1 min read

मेरे भी तो सपने थे _ मुक्तक

पढ़ने को पढ़ा लेकिन पढ़ाई काम नहीं आई।
मिली थी तारीफें झूँठी बढ़ाई काम नही आई।।
अपने आप में फूला वहम था यह मेरा अपना ।
जीत मिली नही मुझको लड़ाई काम नहीं आई।।
________________________________
मेरे भी तो सपने थे तुम्हारे साथ जीने के।
घूंट प्रेम के मिलते तुम्हारे साथ पीने के।।
वाणी में घोली न मिश्री_ कड़वा घूंट पीला बैठे।
इच्छा थी यही मेरी ज़ख़्म तुम्हारे साथ सीने की।।
_______________________________
आए हैं तो जायेंगे रुकना है यहां किसको।
मेरे जैसे जी लेना जीना है यहां जिसको।।
छोड़ो अहंकार अपना समर्पण के पथ पर दौड़ो।
निशानी छोड़ जाना रै छोड़ना है यहां जिसको।।
राजेश व्यास अनुनय

Language: Hindi
1 Like · 108 Views
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