मेरे भी तो सपने थे _ मुक्तक
पढ़ने को पढ़ा लेकिन पढ़ाई काम नहीं आई।
मिली थी तारीफें झूँठी बढ़ाई काम नही आई।।
अपने आप में फूला वहम था यह मेरा अपना ।
जीत मिली नही मुझको लड़ाई काम नहीं आई।।
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मेरे भी तो सपने थे तुम्हारे साथ जीने के।
घूंट प्रेम के मिलते तुम्हारे साथ पीने के।।
वाणी में घोली न मिश्री_ कड़वा घूंट पीला बैठे।
इच्छा थी यही मेरी ज़ख़्म तुम्हारे साथ सीने की।।
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आए हैं तो जायेंगे रुकना है यहां किसको।
मेरे जैसे जी लेना जीना है यहां जिसको।।
छोड़ो अहंकार अपना समर्पण के पथ पर दौड़ो।
निशानी छोड़ जाना रै छोड़ना है यहां जिसको।।
राजेश व्यास अनुनय