राज यही तो बहुत बड़ा था __ गज़ल
हराने को तो जमाना खड़ा था।
पर मैं अपने आप से लड़ा था।।
मेरी सफलता के पीछे का।
राज यही तो बहुत बड़ा था ।।
फैसला किया था मैंने_
जीत कर ही दिखाऊंगा ।
चाहे सामने मेरे_
इम्तिहान कड़ा था।।
बुद्धि काम करती रही_
जरूरत नहीं थी बल की_
निर्बल निर्धनों का संग धड़ा था।
जुनून जो जगाया है मैंने अपने आप में।
नशा फतह का ओरो को कहां चढ़ा था।।
दिन गुजरते रहे मेहनत रंग लाई मेरी।
उस दिन “अनुनय” विजयरत्न जड़ा था।।
राजेश व्यास अनुनय