राज की बात…
राज की बात….. मज़ाक मज़ाक तक
अपनों की भीड़ भी, अब हमे डराए
सिर्फ अकेला पन ,ही मन को भाये।।
हम हक जिस पर अपना जताए
वो किसी और को अपना बताये।।
जब ऐसे लोग ही दर्द दे जाये
हम अपना दुःख किसे सुनाए।।
रोशनी की डगर में खुद जब जाए
पहुँचे रवि तक,दिन ढल आये।।
रात भी तन्हाय ये कर जाये
सुकून से जब, दिन बीत जाए।।
अब मन की बात ,किसे बताये
जो भी सुने ,मजाक बनाये।।
@ अत्रे(कार्तिकेय यादव)