राजा जनक के समाजवाद।
राजा जनक के समाजवाद।
-आचार्य रामानंद मंडल
बाल्मीकि रामायण के अनुसार जनक राज में दास प्रथा –
सीता जी के दहेज में देलन दास -दासी।
दलों कन्याशतं तासां दासवासीनुत्तमम्।
हिरण्यस्य सुवर्णस्य मुक्तानंद विद्रुमस्य च।।५।।
-अयोध्याकांड
अपनी पुत्रियों के लिए सहेली के रूप मे उन्होने सौ-सौ कन्याएं तथा उत्तम दास-दासिययां अर्पित की।इन सबके अतिरिक्त राजा ने उन सबके लिए एक करोड़ स्वर्णमूद्रा,रजतमुद्रा, मोती तथा मूंगे भी दिये।
रामचरितमानस के अनुसार –
जनक राज में वर्ण-व्यवस्था-
रंगभूमि आए दोउ भाई।असि सुधि सब पुरबासिन्ह पाई।।
चले सकल गृह काज बिसारी।बाल जुबान जरठ जर नारी।।
अर्थात – दोनों भाई रंगभूमि में आए है,ऐसी खबर जब सब नगर निवासियों ने पायीं,तब बालकि,जबान, बुढ़े, स्त्री, पुरुष सभी घर और काम -काज को भुलाकर चल दिए।
देखी जनक भीर भै भारी।सुची सेवक सब लिए हंकारी।।
तुरत सकल लोगन्ह पहिं जाहूं।आसन उचित देहु सब काहू।।
अर्थात -जब जनक जी ने देखाकि बड़ी भीड़ हो गई है,तब उन्होंने सभ विश्वासपात्र सेवकों को बुलवा लिया और कहा -तुमलोग तुरंत सब लोगों के पास जाओ और सब किसी को यथायोग्य आसन दो।
दो०- कहा मृदु बचन बिनीत तिंह बैठारे नर नारि।
उत्तम मध्यम नीच लघु निज निज थल अनुहारि।।२४०।।
अर्थात – उन सेवकों ने कोमल और नम्र वचन कहकर उत्तम,मध्यम, नीच और लघु (सभी श्रेणी के) स्त्री -पुरूषों को अपने अपने योग्य स्थान पर बैठाया।
उपर्युक्त सामाजिक विवरण में राजा जनक काल मे दासप्रथा आ वर्ण-व्यवस्था रहे।
-आचार्य रामानंद मंडल सामाजिक चिंतक सह साहित्यकार सीतामढ़ी।