राज़ हैं
गीतिका
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भागे सभी जा रहे आज हैं।
मन में दफन हो गये राज़ हैं।
करते प्रतीक्षा यहां कौन अब।
खुलकर दिखाते सभी नाज़ हैं।
मजबूर देखो कबूतर बहुत।
उड़ते सरेआम जब बाज़ हैं।
कहते रहे वो हमेशा हमें।
कहना कभी मत दग़ाबाज़ हैं।
दर्पण कभी झूठ कहता नहीं।
सबके स्वयं छद्म अंदाज़ हैं।
इठला रही है मुहब्बत बहुत।
सिर पर सजा देखिए ताज़ हैं।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, ०४/०८/२०२४