राजनैतिक आम्र के फल बट रहे चहुंओर देखो !!
एक गीत (चुनावी मौसम को समर्पित)
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राजनैतिक आम्र के फल
बट रहे चहुंओर देखो
किन्तु गुठली ही मिलेगी
जानकर मन थाम लेना|
वोट खातिर नोट के बण्डल बटेंगे प्यार से जब,
देखना तुम उस नयन में गिरगिटों के पूट होंगे|
शब्द में होंगे समाहित पुष्परस जैसी मधुरता,
किन्तु मन भीतर गए जो कुछ गरल के घूँट होंगे|
भावनाएँ जब बहाकर
मान लो छलने लगे तब,
दिल परे रखना सदा फिर
बुद्धि से तुम काम लेना|
राजनैतिक आम्र के फल
बट रहे चहुंओर देखो
किन्तु गुठली ही मिलेगी
जानकर मन थाम लेना||
प्यार का परपंच ऐसा क्या कभी देखा किसी ने,
आप को अपना बताकर स्वर-नली को काट देना|
पाँच वर्षों तक सदा ही कर्म बस दुष्कर्म करना,
और फिर कर जोड़ कर कुत्सित किये को पाट देना|
कर प्रतिज्ञा भीष्म जैसी
छल सदा करते महाशय,
दर्द जब छल से मिले तो
आप झण्डू बाम लेना|
राजनैतिक आम्र के फल
बट रहे चहुंओर देखो
किन्तु गुठली ही मिलेगी
जानकर मन थाम लेना||
दान में मतदान करना या कि धन से बेच देना,
आपका यह कर्म ही तो राष्ट्र को करता कलंकित|
कुछ टके के भाव भाई आपने अधिकार बेचा,
बेचकर अधिकार अपना कर लिया दुर्भाग्य अंकित||
स्वप्न के सौदागरों की
शब्द में जो है तिरोहित,
भाँप गर पाये नहीं तो
घूँट भर बस जाम लेना|
राजनैतिक आम्र के फल
बट रहे चहुंओर देखो
किन्तु गुठली ही मिलेगी
जानकर मन थाम लेना||
चाहते हो राम जैसा राज्य हो अरु भूप वैसा,
स्वार्थ को रखकर परे तुम अबकि बस मतदान करना|
नोट का बण्डल दिखे या कर रही मदिरा प्रलोभित,
रख हृदय पर हाथ साथी राष्ट्र का तुम भान करना|
है छलावा कुछ हि पल का
और फिर तम घेर लेगा,
चाहते हो तुम उजाला
वोट का मत दाम लेना|
राजनैतिक आम्र के फल
बट रहे चहुंओर देखो
किन्तु गुठली ही मिलेगी
जानकर मन थाम लेना||
✍️ पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’