राजनेताओं की भूमिका।
आज इस भीड़ में ऐसे आदमी बहुत कम है ,जो सही लोकतंत्र की परिभाषा जानते हो। उसमें अपने अधिकारों को पाने के लिए कानूनी लड़ाई नहीं लड़ सकता है। उसमें जन – जागृति नहीं आईं है।कि वह लोकतांत्रिक की नई व्यवस्थाओं को कायम कर सकें।
लोकतंत्र जिस बैलगाड़ी पर सवार है, उसके दोनों बैल भृषटाचार की बीमारी से ग्रस्त हैं। और सारथी कंट्रोल नहीं कर पा रहा है।
लोकतंत्र बड़ी बड़ी समस्याओं से जूझ रहा है।हम जनसंख्या पर सही कंट्रोल नही कर पा रहे हैं।वक्तव्य और तर्क- वितर्क पर ही राजनीति होती है। समस्या कैसे हल की जा सकती है।इस विशेष
वार्ता पर ध्यान केन्द्रित होना चाहिए। राजनेताओं की भूमिका– हमारे देश के राजनेता पांच वर्ष बाद अपने ही क्षेत्र में एक बार ही
आते है। फिर चुनाव जीतने के बाद सब कुछ भूल जाते हैं।इन नेताओं का आंतरिक भाव ठीक नहीं होता है।वे जनता से एक दम कट जाते हैं। सम्पर्क करने के बाद भी कोई निर्णय नहीं हो सकता है। ये फिर अपने भाई भतीजे में ही सिमट कर अपनी जिंदगी जीने लगते हैं। जहां तक सरकारी योजनाओं की जानकारी तक अपने क्षेत्र तक नहीं पहुंचा पाते हैं।इनका कर्मचारी तंत्र इन्हें इस कदर मूर्ख बनाता है कि ये अपना निर्णय नहीं ले सकते हैं। ये अपनी सारी भूले मिटाने में ही व्यस्त रहते हैं।जनता इनको पहचान कर भी दर – किनार नहीं करती है।अपना सब कुछ सौंपने के बाद तड़प तड़प कर जिंदगी जीती हैं। आर्थिक तंगी और शिक्षा का अभाव सबसे बड़ी समस्या उसके सामने मुंह फाड़े खड़ी रहती है।आज हमारा लोकतंत्र हर कर्मचारी की जेब में रहता है।
राज नेता का सच्चा काम क्या होना चाहिए।उसे खुद मालूम नहीं रहता है।वो जब सत्ता में आता है, तो वह बहुत ही थका हुआ होता है। इसलिए वह सिर्फ आराम ही करता है। और झूठी वाहवाही में लगा रहता है।जनता के दुख – सुख भूल कर एक स्वारथी परक जिन्दगी जीने में मग्न हो जाता है।