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12 Dec 2020 · 2 min read

राजनीति में कुछ भी सम्भव है , क्यों…??

अभी कुछ समय पहले मेरी नजर एक लोकप्रिय भारतीय राजनीतिज्ञ की टिप्पणी पर गयी जिसमें उन्होंने कहा कि ” राजनीति में सब कुछ संभव है ” इस टिप्पणी से में बहुत आश्चर्य चकित हुआ कि भारतीय नेता ऐसा बयान कैसे दे देते है..? क्या इनका कोई ईमान नही है या कोई जमीर..? क्योकि कुछ भी सम्भव है में ऐसा कुछ बचा ही नही जिस वैचारिक आधार पर आप जनता के सामने वोट मांगते हो और जनता आपकी वर्तमान वैचारिक स्थिति को देखकर आपको वोट देती है क्योंकि जिस मुद्दे पर जनता ने आपको वोट दिया जिस आधार पर आपके ऊपर विस्वास किया , वो तो अलोप ही हो गया , फिर जनता आपसे क्या उम्मीद रखे और किस आधार आपको वोट दे क्योकि कुछ भी हो सकता है में केबल वही होगा जिसमें नेता को या पार्टी को लाभ होगा वो तो कतई नही होगा जिसमें जनता को या किसी कर्तव्यनिष्ठ विचार को लाभ हो ।
यही कारण है कि जैसे ही किसी नेता को या पार्टी को व्यक्तिगत तौर पर हानि होती है वह तुरन्त ही अपनी वर्तमान स्थिति को असहनीय बताते हुए उस तरफ रुख मोड़ लेता है जहां उसे लाभ होता है। यह तो सोचने बाली बात है कि अगर तुमको असहनीय है तो आप उसी स्थान पर क्यों स्थापित होते हो जहाँ आपको लाभ होता है वहाँ क्यों नही होते जहाँ आपको उस असहनीयता को तोड़ने के लिए संघर्ष करना पड़े। ऐसा तो ना के बराबर ही देखने को मिलता है। यही कारण है कि जैसे ही चुनाव आते है नेता पार्टी की अदला बदली करते है और पार्टी बदलने के चंद सैकेंड वाद ही ऐसी टिप्पणी करते है कि गिरगिट भी भौचक्का रह जाए कि ये कौन सा प्राणी है।
सच में भारतीय नेताओं ने विचारधारा को विचारधारा नही बल्कि भंडारे का दौना बना दिया है जो अच्छा लगे उसे लो जितना खाना है खाओ अन्यथा फैंक दो और दौना बांटने बाले को भी ज्ञान दे दो कि तमीज से बाँट ।

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 2 Comments · 232 Views
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