राजनीति दोहावली
********* राजनीति दोहावली ********
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देखो कितना है बुरा, कुर्सी का यह खेल।
आपस में ही मर मिटें,हो न किसी से मेल।।
मानवता का है पतन,,नहीं किसी का खोप।
कुर्सी के इस खेल में , भाई – चारा लोप।।
प्रबल नीति है झूठ की, राजनीति का खेल।
कुर्सी उस को ही मिले,जिसमें जितना तेल।।
ऊपर से कुछ ओर है,मन में है कुछ ओर।
चेहरे हैं बनावटी,कपट छिपा घन घोर।।
कुर्सी लालच में करें, वादों की भरमार।
कुर्सी हो जब जेब मे,जनलोक दरकिनार।।
जाति-जहर हैं घोलते, नहीं किसी से प्रीत।
मोह-लोभ को सींचते,नफरत की है जीत।।
मानवता है हारती , दानवता की जीत।
धन-वैभव में कट मरे, हैवानियत की रीत।।
नाटक करते टहल का ,करते ढोंग फ़रेब।
भरे खजाने लूटते ,भर-भर अपनी जेब।।
मनसीरत मन है दुखी,देख देश का हाल।
जन-जनार्दन की कभी,न गले कोई दाल।।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैधल)