राजनीति गर्त की ओर
शर्म की बात जब गर्व बन जाये,
मूल्यों की राजनीति गर्तों में दफन जाए
तो समझो राजनीति गर्त की ओर अग्रसर है ।
लक्ष्य जब पलटने का कीर्तिमान बनाना हो
सिद्धान्तों को राजनैतिक कफ़न ओढ़ाना हो
तो समझो राजनीति गर्त की ओर अग्रसर है ।
राजनीति में मूल्यों की जगह स्वार्थ लेले
अराजकता गली-गली डगर-डगर खेले
तो समझो राजनीति गर्त की ओर अग्रसर है ।
रंग बदलती राजनीति जब गिरगिट को मात करे
और बेशर्म राजनेता फिर भी मूल्यों की बात करे
तो समझो राजनीति गर्त की ओर अग्रसर है ।
राजनैतिक गिरावट देख पतन भी शर्माने लगे
जब हर पल राजनेता का ईमान डगमगाने लगे
तो समझो राजनीति गर्त की ओर अग्रसर है ।
प्रजातंत्र में मूल्य गिरने के रिकॉर्ड बनाने लगे
राजनेता को हर दिन नीचे और नीचे गिराने लगे
तो समझो राजनीति गर्त की ओर अग्रसर है ।
राजनीति में जहां स्वार्थ ही सिद्धान्त बन जाये
बेशर्मी के साथ राजनेता का सीना तन जाए
तो समझो राजनीति गर्त की ओर अग्रसर है ।
जनतंत्र जब राजशाही में बदलने लगे
राजनेता रजवाड़ों की राह चलने लगे
तो समझो राजनीति गर्त की ओर अग्रसर है ।