राजनीति और वोट
राजनीति और वोट
बनना नेता नहीं आसान
राजनीति अपनाना पड़ता है,
जनता से झूठे वादे संग,
विश्वास दिलाना पड़ता है,
थोथे खोखले दावों संग,
चुनाव मैदान में जाना पड़ता है,
“हूं ” जनता का सच्चा सेवक
यही जतलाना पड़ता है,
बड़े बड़े बेलते पापड़ संग
राजनीति रोटी सिंकवाना पड़ता है,
भोली भाली जनता को प्रलोभन दिखाना पड़ता है,
राजनीति के अखाड़े में दांव अजमाना पड़ता है,
झूठे भाषण, चुनावी रैली,
माहौल बनाना पड़ता है,
वोटिंग के पोलिंग बूथ पे जाकर धौंस जमाना पड़ता है,
कतार में पांच पांच सौ के नोट
हर एक पर लूटाना पड़ता है,
नेता बनने खातिर यारों
कुछ ठाठ बनाना पड़ता है,
गलती से यदि जीत गया तो वादों को भुलाना पड़ता है, भोली भाली जनता को मुद्दे से भटकाना पड़ताहै,
ऐशो आराम की दुनिया जीकर
नोट कमाना पड़ता है,
पांच पुश्तें चैन से खा सके ,
वैसा धन जुटाना पड़ता है,
बनना नेता आसान नहीं ,
राजनीति में आना पड़ता है|
वोट:- अपना मत मैं उसी को दूंगी, जो जनता का सेवक हो,
प्रजा की बात को माथ पर रखकर,
समाज कल्याण की बात करे,
जो नारी के सम्मान और हित में, जनमत में विश्वास भरे।
जो विकास बढ़ायें खुशियां बांटे,
सबके पग के हरे वो कांटे।
विज्ञान,विधान और नीति नियम संग
मैं महफूज़ हूं आश्वस्त कराये।
बिजली पानी और खुशहाली
गांव शहर में तब्दीली लाये।
भरे न वो भण्डार बस अपना
पब्लिक का पैसा पब्लिक पे लुटाये,
अपना वोट मैं उसी को दूंगी जो मन में यह विश्वास जगाये।
डॉ कुमुद श्रीवास्तव वर्मा कुमुदिनी लखनऊ