राजनीति और जनता
चोंच लड़ावैं सब यहां और करैं हुड़दंग
रूठे जिनके लिये हैं वो सब फिरते चंग
वो सब फिरते चंग फिकर ना है काहू की
अपना भरते पेट औ ऐसी तैसी सब की
सोंचि व्यथित मतिभंग भे कैसी सबकी सोंच
बुद्धी से पैदल फिरैं और लड़ावैं चोंच
़़़़़़़ अशोक मिश्र