राग अधरों पर सजाना आ गया
राग अधरों पर सजाना आ गया
लो मुझे भी गीत गाना आ गया
छटपटाहट आज मन की भूल कर
दर्द में भी मुस्कुराना आ गया
नेह की इक बूँद को गिरते हुये
सीप के मुँह में समाना आ गया
आँसुओं को भी पलक के छोर पर
मोतियों सा जगमगाना आ गया
बादलों को प्यार की बरसात कर
प्यास चातक की बुझाना आ गया
हर तरफ विद्वेष की चिंगारियां
देखिये तो क्या ज़माना आ गया
अब न पतझर का कोई डर है हमें
अब हमें गुलशन सजाना आ गया
राकेश दुबे “गुलशन”
24/07/2016
बरेली