राख
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तन पे राख लपेट कर , बसहा बैल सवार।
शिव के दम पे है खड़ा, ये पूरा संसार।। 1
दुर्बल नारी जान के, मत करना अपमान।
चिंगारी है राख में, क्षण में लेगी जान।। 2
रिश्तों में विश्वास है, कभी न हो कमजोर।
आज राख जल हो रही , रिश्तों की हर डोर।। 3
अहंकार जो भी किया, टूटा उसका शाख।
रूई लिपटी आग ज्यों, जलकर होती राख।। 4
नारी के उत्थान की, जोर शोर से बात।
राख हुई जल आज भी, फिर क्यों रातों – रात।। 5
देखो फाँसी चढ़ रहा,अपनाआज किसान।
खेत राख जब हो गया,टूटा हर अरमान।। 6
बेटी से बनकर बहू ,रही निभाती धर्म।
राख जला कर के किया,आयी तनिक न शर्म।। 7
ईर्ष्या जैसी आग में, बचा न कोई शाख।
जलभुन कर जीवन सदा, इसमें होता राख।। 8
मानव हठी स्वभाव तो ,चिता संग ही जाय।
रस्सी जलकर राख हो ,ऐठन रहे समाय।। ९
चिंता चिता समान है,बिल्कुल सच्ची बात।
एक बार जलते चिता, चिंता में दिन रात। 10
छैल छबेली मोहिनी, हँस हँस मारे आँख।
देख पड़ोसी जल मरा,बिन माचिस के राख।। 11
मानव तन नश्वर सदा, मत करना अभिमान।
शेष बचेगी राख ही, तन जलते श्मशान।। 12
–लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली