राखी पर तोहफा
घर का माहौल बोझिल है । आज राखी के दिन भी सरला गुमसुम सी बैठी है । नहीं तो अब तक वह घर सिर पर उठा लेती थी:
” माँ मैं कौन सा सूट पहनूँ, अभी तक राखी भी नहीं खरीदवाई आपने इस बार तो गणेश जी की बड़ी राखी लूंगी मयंक भईया के लिए और हाँ , माँ उन्हे गुलाब जामुन पसंद है , एक किलो ले लेंगे ।”
सब कुछ एक क्षण में बदल जाऐगा सोचा भी न था ।
पिता जी स्वाभिमानी है , कारोबार में घाटा हो गया था और भईया का आईएएस मे सिलेक्शन होने के बाद पोस्टिंग दूसरे शहर में हो गयी थी , उनके आने की भी कोई खबर नही थी । इस बार राखी सूनी सूनी थी ।
रात के 9 बज रहे थे । मौहल्ले की सभी बहनों ने अपने भाईयों को राखी बांध दी थी , और बाहर सन्नाटा था ।
अपने बचे पैसों से सरला एक राखी और दो पेड़े भर लाई थी ।
माँ ने दरवाजे की कुण्डी लगा दी थी , पापा सो गये थे और सरला सोने का उपक्रम कर रही थी ।
अचानक दरवाजे पर खट खट की आवाज ने सरला को विचलित कर दिया । माँ ने दरवाजा खोला । मयंक बेहद थका सा खड़ा था , वह कार से निकला तो सुबह से था लेकिन जगह जगह बरसात के कारण रास्ते बंद थे । तभी मुरझाया चेहरा लिए सरला आई । माँ ने एक सांस में घर के पूरे हालात बता दिऐ ।
चाय नाश्ते के बाद सरला राखी लाई और मयंक को बान्ध दी । पिताजी अंदर के कमरे से बाहर के हालचाल देख रहे थे । तभी मयंक ने चेक बुक निकाली और दो लाख रूपये भर कर सरला को देते हुए बोले :
” सरला, भाई बहन का राखी पर रिश्ता सिर्फ मिठाई गिफ्ट तक सीमित नहीं रहता है , सुख से ज्यादा दुख परेशानी में साथ निभाने का है , सरला यहाँ इतना कुछ हो गया लेकिन तुमने नहीं बताया, खैर अब पापा तो पैसे लेंगे नहीं, लेकिन इन पैसों को फिर से कारोबार में लगा कर घाटा दूर करना और अगले साल हम फिर पहले की तरह राखी मनाएंगे । ”
इस राखी पर सरला की , मयंक के प्रति भ्रान्तियाँ दूर हो गयी थी और उसके चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी थी । माँ के चेहरे पर संतुष्टि थी और पापा अगली सुबह नये जोश के साथ कारोबार शुरू करने वाले थे ।
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल