राखीगढ़ी कंकाल से रार-तकरार !
राखीगढ़ी के कंकाल यानी गड़े मुर्दे उखाड़ना !
राखीगढ़ी के कंकाल यानी गड़े मुर्दे को उखाड़ना ‘भारतीय संस्कृति’ के ! यह तो वैज्ञानिक आधार पर भी साबित हो चुकी है कि भारत के मूल में द्रविड़-संस्कृति व आदिवासी-संस्कृति रही है।
सिंधु घाटी सभ्यता को वैदिक सभ्यता कहा जाता है, किन्तु राखीगढ़ी के 4500 वर्ष पूर्व के उत्खनित नर-कंकाल यह तो साबित करते हैं कि यह द्रविड़ियन सभ्यता है, किन्तु सिंधु घाटी के नगर नियोजन से यह स्पष्ट होता है कि यहाँ रहनेवाले लोग शिल्पकार और कलाकार भी थे, दक्षिण भारत के मंदिरों को देखते हुए यह कहा जा सकता है, सिन्धुघाटी सभ्यता के शिल्पकार ‘अनार्य’ भी हो सकते थे।
अब चूँकि भारत में काले-गोरे सहित सभी धर्मावलम्बियों के लोग भी सदियों से भारत को अपना मातृभूमि मान रहने लगे हैं, ऐसे में गड़े मुर्दे (कंकाल) को उखाड़ना देशहित में नहीं है, इनसे राष्ट्र की एकता और अक्षुण्णता भंग हो सकती है।