“रह गए यूँही अकेले में “
डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
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चुन चुन के तिनकों से ,
हमने घोसला बनाया !
धुप बारिस के थपेड़ों से !!
हमने इसको बचाया ,
अपने जिगर के टुकड़ों !
को सीने में छुपाया !!
ना गम का साया कभी ,
उनके करीब आया !
परवरिश करते रहे ,
चलना भी सिखाया !!
उड़कर गगन चूम लेने ,
की कला को बताया !
अब ऐसे उड़ चले वो ,
खो गए किस मेले में !
हम तो निहारा करते हैं ,
रह गए यूँही अकेले में !!
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डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका
झारखण्ड