रहे चिर नूतन नेह हमारा…
रहे चिर नूतन नेह हमारा…
रात निखर उठती है जैसे, चंदा को निज अंक लगाकर।
मैं भी निखर उठूँगी वैसे ही, साथ तुम्हारा अद्भुत पाकर।
नहला चाँदनी में अपनी तुम, अमृत-कण ढुलकाते रहना।
चैन से मैं भी सो जाऊँगी, नैनों में तुम्हारी छवि बसाकर।
देख उनींदी पलकें मेरी, मीठी बतियों से मन बहलाती।
मुझमें दम भरती है राका, किस्से नेह के मुझे सुनाकर।
‘सुधबुध बिसराकर खुद की, यादों में उसकी खोई रहती।
राह अगोरा करती उसकी, अहर्निश मैं पलक बिछाकर ।
कहे ये दुनिया मुझको काली, पर मैं कितनी गौरवशाली।
तारों से मेरी माँग सजाता, वो चाँद दुल्हन मुझे बनाकर।
युगों- युगों तक संग रहने की, रस्में वह सारी पूरी करता।
साथ ले जाता पौ फटते ही, डोली जग से विदा कराकर।
आई न एक घड़ी भी ऐसी, साथ जो उसने छोड़ा हो मेरा।
रहे चिर नूतन नेह हमारा, अनंत पलों का साथ निभाकर।
कितने संबंध टूटते जमीं पर, पर साथ न हमारा छूटा।
सारे उलाहने भूल मैं जाती, एक झलक ही उसकी पाकर।
लुकाछिपी कभी खेला करता, छुप जाता मेघ-घटाओं में।
रूठ जाती तो खूब मनाता, मासूम अदा से मुझे लुभाकर।
नेह भरे नयनों से जब वह, अपलक मुझे निहारा करता।
ढक लेती मुखड़ा करतल से, मैं तारों की ओट लजाकर।’
-सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)