रहा उलझा तुम्हारी, शोख चंचल सी अदाओं में!
गजल
1222……..1222…….1222………1222
तेरी खुशबू सी आती थी, सुबह की उन हवाओं में!
रहा उलझा तुम्हारी, शोख चंचल सी अदाओं में!
नहीं करता अगर तम दूर, रक्खा क्या चरागों में.
ये दुनियाँ झांक कर देखो, रखा क्या है किताबों में!
बरसती बारिसें मौसम, सुहाने थे वो दिन कितने,
कि जैसे जाफरानी गंध, छायी हो फिज़ाओं में!
वो काले बादलों का राज, खुल के सामने आया,
कि था वो आंख का काजल, तेरा काली घटाओं में!
जो मुझको प्यार करता था, जियादा सारे रिश्तों से,
गुनाहों का भॅंवर निकला, नहीं आया निगाहों में!
जिसे मैं चांद कहता था, बहुत नजदीक था मेरे,
बहुत कोशिश करी आया नहीं, वो मेरी बाहों में!
किया था प्यार जिसको, जिंदगी था वो मेरी प्रेमी,
हमारे उसके किस्से एक दिन, होंगे कथाओं में!
…… ✍ सत्य कुमार प्रेमी
24 जून, 2021