रहा अब नहीं वो ज़माना गया
ग़ज़ल-122 122 122 12
रहा अब नहीं वो ज़माना गया।
गये तुम तो मौसम सुहाना गया।।
हसीं पल निगाहों में हैं आज भी ।
तेरा रूठना औ मनाना गया।।
शरारत नज़ाकत बग़ाबत गईं।
नज़र का मिलाना झुकाना गया ।।
कभी हम भी माहिर थे इस खेल में।
गई जो नज़र तो निशाना गया।।
नही ये कदम लड़खड़ाते है अब।
गया अब वो पीना पिलाना गया।।
हुआ है परिंदा ये बेघर अभी।
कटा पेड़ तो आशियाना गया।।
अनीस अब ये ख़ामोश रहती ज़बाँ।
कभी था जो लब पर तराना गया।।
_अनीस शाह “अनीस”