””’रहस्य”””
स्वप्न पर आधारित लघु-कथा “”””’’रहस्य”””””
अथाह महासागर दूर-दूर तक कहीं कोई स्थल नहीं जल ही जल। हम लोग एक नाव पर सवार थे लगभग 5-7 की संख्या में थे ,पता नहीं कहां से आ रहे थे। केवल इतना याद है कि सूरज की दिशा में ,यानी पूरब दिशा में, हम लोग जा रहे थे ।
बारी -बारी से कुछ लोग नाव चलाते तो कुछ लोग आराम करते नाव पर कुछ खाने -पीने का सामान था ।हम लोगों के थोड़े- बहुत कपड़े भी थे। ऊपर झंड़ा पूरब की तरफ लहरा रहा था। हवा पश्चिम से पूरब की तरफ चल रही थी ,हवा तेज चलने की वजह से पानी में बड़े-बड़े तरंगे बन रहे थे जिसकी वजह से नाव खेने में ज्यादा परेशानी हो रही थी ।
हम लोग हवा के साथ-साथ पूरब दिशा में जा रहे थे ।ऐसा लग रहा था कि हम लोग बहुत ज्यादा दिनों से समुंद्र में ही है मन में कुछ आशंकाएं उत्पन्न हो रही थी ,कुछ दूर आगे जाने के बाद हवा का रुख बदल गया अब हवा पूरब से पश्चिम की ओर चलने लगी ।हवा के चलने की गति बहुत तेज हो गई ,जिसकी वजह से हमारी नाव डगमगाने लगी हम लोग भयभीत हो गए, सशंकित हो गए ।मन में तरह-तरह के विचार उत्पन्न होने लगे पता नहीं अब हम लोग यहां से वापस जा पाएंगे कि नहीं।
दूर-दूर तक कोई स्थल नहीं दिख रहा था फिर भी हम लोग आगे बढ़ते रहे ।कुछ दूर पूर्व दिशा में चलने के बाद दूर एक स्थल का टुकड़ा दिखाई दिया तथा उस पर पेड़ पौधे भी थे तथा चिड़ियाये भी उड़ रही थी ।हम लोगों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा ।समुंद्र में चलते चलते बहुत ही थक गए थे। सब खुश थे चलो स्थल मिला, आराम किया जाएगा ।
जैसे -जैसे स्थल की ओर आगे बढ़े हम देखते हैं वहां पर लोगों की बहुत ज्यादा भीड़ लगी थ स्थल बहुत बड़ा नहीं था लेकिन लोगों से भरा था ।लोग हम लोगों को आश्चर्य से देख रहे थे, हम भी बहुत खुश थे।
स्थल पर हमने जो कुछ भी देखा वह इस प्रकार है 6-7 की संख्या में छोटे-छोटे मंदिर थे मंदिर के ऊपर मीनार पर झंडा लहरा रहा था ।मंदिर के चारों तरफ पीपल के पेड़ थे। पेड़ों में डोरे लपेटे गए थे तथा सिंदूर से निशान बनाए गए थे। वहां बहुत ज्यादा संख्या में लोग थे महिलाएं रंग- बिरंगी साड़ी पहनी हुई थी हाथ में चूड़ी तथा तरह-तरह के आभूषण भी पहनी हुई थी। पुरुष सफेद रंग में धोती तथा कुर्ता पहने हुए थे।तथा सर पर पगड़ी बांधे थे, इसके अलावा छोटे-छोटे बच्चे भी थे। दो -तीन जगह साधुओं का झुंड भी बैठा हुआ था जो भजन-कीर्तन गा रहे थे ।कुछ लोग मंदिर के अंदर से पूजा करके निकल रहे थे तथा कुछ लोग पूजा करने जा रहे थे। सबके हाथों में पूजा की सामग्री से भरी हुई एक थाली नूमा बर्तन था ।कुछ महिलाएं पीपल के आस-पास बैठकर दीप जलाकर पूजा कर रही थी तथा गीत गा रही थी।
कुछ महिलाएं मिट्टी के बर्तन में रोटी बना रही थी। धूप बत्ती जलने से पूरा वातावरण सुगंधित हो रहा था ।वहां का माहौल देखने से ऐसा लग रहा था कि आज कोई धार्मिक त्यौहार है जिस के उपलक्ष में यहां पर सभी लोग पूजा करने आए हैं ।जब हम लोग स्थल पर पहुंचे तो वे हमें चारों तरफ से घेर कर आश्चर्यचकित होकर देखने लगे। कुछ लोग आगे आए और हम लोगों को एक पीपल के पेड़ के नीचे बिठाए ।तथा तेल में बनी हुई रोटी खाने को दियें तथा पानी भी पिलाया ।हम लोगों की बहुत सेवा किये उनके चेहरे पर प्रसन्नता का भाव साफ झलक रहा था ।हम लोग भी बहुत खुश थे।