*रहस्यमय हाथी (कहानी)*
रहस्यमय हाथी (कहानी)
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दिल्ली जाने के लिए ट्रेन के इंतजार में मैं रेलवे स्टेशन पर खड़ा हुआ था। ट्रेन आने में अभी दस मिनट की देर थी । प्लेटफार्म पर भीड़ अच्छी-खासी थी ।
तभी मेरी निगाह दूर एक हाथी पर गई । वह हाथी का बच्चा जान पड़ता था । उसे देख कर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। मैं सोचने लगा कि रेलवे प्लेटफार्म पर यह हाथी का बच्चा कहां से आ गया ? फिर मैंने सोचा कि हो सकता है , जंगल के रास्ते से भटकता हुआ आ गया होगा ? मैं उस हाथी के बच्चे के भविष्य को लेकर उधेड़बुन में था ही कि अकस्मात आश्चर्य से मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं। मैंने देखा कि हाथी ने अपनी सूँड तीन-चार बार हिलाई और देखते ही देखते उसकी सूँड गायब हो गई । केवल इतने पर ही बात समाप्त नहीं हुई । अब हाथी ने अपने शरीर को हल्के-हल्के हिलाना-डुलाना शुरू किया और मुश्किल से एक मिनट ही लगा होगा कि हाथी का शरीर परिवर्तित होकर मनुष्य के शरीर में बदल गया। अब हाथी पैंट पहने हुए था । कमीज पर उसने टाई लगा रखी थी । अब वह धीरे-धीरे भीड़ की तरफ बढ़ता चला रहा था ।
हाथी के चलने की दिशा मेरी और ही थी । हाथी तो उसे मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि मैंने उसे हाथी के रूप में देख रखा था ! अब तो वह वास्तव में एक मनुष्य ही था। गोल-मटोल, मोटा ,रंग सांवला ! कोई भी उसे देखकर यह नहीं कह सकता था कि अभी दो मिनट पहले यह एक हाथी था । अब वह पूर्ण रूप से एक मनुष्य ही था । लेकिन क्योंकि मैंने उसे हाथी के रूप में देखा था ,अतः मैं तो उसे हाथी ही कहूंगा ।
जैसे ही ट्रेन आई ,मैं जल्दी से दरवाजे के अंदर गया और चेयर-कार की 37 नंबर की सीट पर बैठ गया । मेरी सीट रिजर्व थी। बैठने के बाद मैंने देखा कि वह हाथी भी मेरे ही डिब्बे के अंदर आ गया । बिल्कुल मेरी सीट के बराबर अर्थात 38 नंबर की सीट पर वह बैठ गया । मुझे काटो तो खून नहीं । यह मैं कहां फंस गया ! -मैं सोचने लगा । पता नहीं अब मेरा क्या नुकसान हो और मैं जिंदा भी बचूँ , न बचूँ ? मेरे चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं।
हाथी ने मेरी मुश्किल को समझ लिया। आपने कोमल हाथ से उसने मेरे हाथ की हथेली को हल्का-सा दबाया और कहा ” चिंता मत करो ! मैं किसी का नुकसान नहीं करता । जिससे मिलता हूं , उसका फायदा ही करके जाता हूं ।”
हाथी की आवाज में न जाने कैसा माधुर्य था कि मैं मोहित हो गया । उसकी आवाज उसके मुंह के स्थान पर आकाश से आती हुई जान पड़ती थी। मैं समझ गया कि यह कोई या तो सिद्ध पुरुष है अथवा कोई देवता । लेकिन समझ फिर भी कुछ नहीं पाया। रास्ते में हाथी से मैंने पूछा “आप वेश क्यों बदलते हैं ?”
हाथी ने बताया ” समय-समय पर कुछ दुष्ट लोग गलत कार्य करने लगते हैं । तब मैं उनका रूप धरकर बड़े-बड़े कार्य करता हूँ। उतनी देर तक वह लोग सुप्त-अवस्था में पड़े रहते हैं। ”
मैंने जब इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया तो हाथी ने कहा ” इसमें ताज्जुब करने की कोई बात नहीं है । आज भी मैं एक बड़े मिशन पर जा रहा हूं । मुझे एक बड़े अधिकारी का रूप धरकर कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लेना है । उसके बाद मैं वापस चला जाऊंगा ।”
मैंने पूछा “जब आप दूसरे व्यक्ति का रूप धरकर फैसले लेंगे ,तब ऐसे में वह दूसरा व्यक्ति जब सोते से जागेगा और उसे पता चलेगा कि जो फैसले उसके नाम पर लिए गए हैं वह वास्तव में उसने नहीं लिए हैं तब वह उन्हें पलट नहीं देगा ? ”
हाथी मुस्कुराया । बोला “एक बार जो फैसला ले लिया जाता है उसे पलटा नहीं जा सकता । और फिर फैसला मैंने थोड़े ही लिया है ! फैसला तो उस व्यक्ति ने ही लिया होता है । ”
हाथी की बात मेरे पल्ले नहीं पड़ी लेकिन फिर भी मैंने सहमति की मुद्रा में सिर हिला दिया । उसके बाद हाथी ने कहा “अब चुपचाप बैठो और शांति से यात्रा करते रहो।” मैंने फिर कोई सवाल नहीं किया ।
निश्चित समय पर हमारी ट्रेन दिल्ली जाकर रुक गई। इससे पहले कि मैं डिब्बे से बाहर आता, चार पांच लोग जो टाई पहने हुए थे ,डिब्बे के अंदर आए और उन्होंने हाथी के गले में फूल मालाएँ पहना दीं। फिर सम्मान सहित वह हाथी को डिब्बे के बाहर ले गए । बाहर भी दस-बारह लोग फूलमाला लेकर हाथी के स्वागत के लिए खड़े हुए थे। सब उच्च-अधिकारी जान पड़ते थे । मैं समझ गया कि हाथी सही कह रहा है ।
दिल्ली पहुंचकर मैं जिस काम के लिए गया था, उसमें मुझे काफी अडंगे लगने की उम्मीद थी । मैं सोचता था कि तीन-चार बार तो दिल्ली आना ही पड़ेगा । मोटी रिश्वत भी शायद देनी ही होगी । लेकिन न जाने क्यों ,मैंने अधिकारी के सामने अपनी फाइल रखी और उसने एक नजर डाल कर ही कह दिया “आपका कार्य सही है। ”
अधिकारी ने तुरंत हस्ताक्षर कर दिए। आदेश पारित हो गया । मुझे एक क्षण के लिए संदेह हुआ कि यह अधिकारी कहीं ट्रेन में मिलने वाला हाथी तो नहीं था ?लेकिन वह जो हाथी था ,वह तो बहुत मोटा था और साँवले रंग का था । जबकि जिस अधिकारी से मैं मिला था ,वह गोरा-चिट्टा तथा दुबले शरीर का था । बहरहाल मेरी समझ में कुछ नहीं आया ,लेकिन फिर भी मैं प्रसन्नता पूर्वक एक आश्चर्यजनक अनुभव लेकर अपने घर वापस लौट आया।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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