रहगुज़र में चल दिखाता आइनें
रहगुज़र में चल दिखाता आइनें
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दरमियाँ दरिया दुखों के सामने,
हो गये हैँ अब दिलों में फासले।
मुश्किलों में नाव लहरों में बही,
बच गए सारे खुदा के आसरे।
टूटते तारे गगन में रात – दिन,
चाँद निकला है,तमस के दायरे।
छोड़ दो सारी उम्मीदें जो रखी,
तोड़ दो नाते , इसी में फायदे।
बोझ के तल में दबी है आरजू,
काम आते है नहीं सब कायदे।
जान की बाजी लगा देंगे सनम,
जा कहाँ ढूढें किये वो वायदे।
देख लो चलकर हवा के संग यूँ,
बाद में किस काम के हैँ मायने।
यार मनसीरत लगाता है डगर,
रहगुजर में चल दिखाता आइनें।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)
देख लो चलकर मायने