रस ज्ञान (घनाक्षरी)
प्रेमी-प्रेमिका के बीच, योग या वियोग हो तो,
वहां श्रृंगार रस की, अनुभूति होती है।
हो हँसी-विनोद और, हास-परिहास दिखे,
हास्य रस जानो जहां, हँसी-ख़ुशी होती है।
चिर विरह या मृत्यु, रोना-धोना या बिछोह,
करुण काव्य में शोक, वेदना ही होती है।
वीरता का गुणगान, युद्ध क्षेत्र का बखान,
वीर रस में उत्साह, से ही जीत होती है।
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काव्य दिखलाये क्रोध, अपमान का हो बोध,
रौद्र रस मुख लाल, पीला कर देता है।
जब कहीं डर छाये, मुह सूखे चिंता आये,
रस जानो भयानक, भय कर देता है।
काव्य में जुगुप्सा ग्लानि, घृणित विचार उठे,
वीभत्स रस ये घृणा, भाव कर देता है।
विस्मय रोमांच लाये, विचित्र प्रभाव छाये,
आश्चर्य अद्भुत रस, पूरा कर देता है।
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नहीं कोई दुःख द्वेष, मन में न कोई क्लेश,
शांत रस शांति पूर्ण, कार्य जो भी होता है।
बड़ों का छोटों के प्रति, जैसे माँ का सुत हित,
वात्सल्य कहलाता, जो भी नेह होता है।
देव रति भक्ति भाव, ईश्वर पे जो लगाव,
भक्ति रस अनुराग, प्रभु पर होता है।
दस धन एक रस, कौशलेन्द्र लिखे बस,
आत्मसात करे कोई, खुद पर होता है।।
©कौशलेन्द्र सिंह लोधी ‘कौशल’