रस्म़ -ए- उल्फ़त
गिला – शिकवा भुला दीजिए ,
दीवार -ए- नफ़रतें गिरा दीजिए ।
चार दिन की है जिंदगानी ,
रस्म़ -ए- उल्फ़त निभा लीजिए ।।
डां. अखिलेश बघेल
दतिया (म.प्र.)
गिला – शिकवा भुला दीजिए ,
दीवार -ए- नफ़रतें गिरा दीजिए ।
चार दिन की है जिंदगानी ,
रस्म़ -ए- उल्फ़त निभा लीजिए ।।
डां. अखिलेश बघेल
दतिया (म.प्र.)