रस्तोगी की कुंडलियाँ –आर के रस्तोगी
लिख रहा हूँ रोजनामचे में देश का हिसाब |
पन्ने इतने भर गये,बन गयी मोटी किताब ||
बन गयी मोटी किताब, पाठक पढ़ते रहते |
प्रंशसा के पत्र उनके, रोजना ही आते रहते ||
कह रस्तोगी कविराय,कवि क्या लिख रहा है |
कवि को जो दिख रहा है वही तो लिख रहा है ||
रोजनामचे की प्रवष्टि,लेजर में है चली जाती |
जिसके डेबिट क्रडिट,सबकी एंट्री होती जाती ||
सबकी एंट्री होती जाती,पूरा खाता बन जाता |
जिस नेता ने जितना खाया हिसाब बन जाता ||
कह रस्तोगी कविराय,बताओ नेताओ के खर्चे |
पकड़े सब जायेगे,जब लिखे जायेंगे रोजनामचे ||
आर के रस्तोगी
(गुरुग्राम)