रसलीन संजय
रसलीन संजय
सदा सरस,रसलीन संजय
कविता नई,पर वही कहानी
नई बोतल में मद्य पूरानी
तीक्ष्ण तीर,उलट वाणी कबीर
मन्मथ रंग,उमंग सदा अबीर
चुस्की,मुस्की से ओतप्रोत
मद-संगम-नद में प्रति गोत
मदन क्रीड़ा के प्रवीण संजय।
थोड़े कड़क,बड़े बेधड़क
दुनिया से न कछु फरक
स्वाभिमानी,प्रीत-तत्वज्ञानी
नकेल कसती बस एक रानी
किंचित,अंकुश अति या थोड़ा
दृग-पट्टी,टमटम का घोड़ा
दन्त,सख्त,अखरोट भक्षण
पाये प्रतिभा अति विलक्षण
प्रतिभा-कंत, रंगीन संजय।
-©नवल किशोर सिंह