“रसना, अब हिय से हरि बोल..!”
खोया बचपन, गई जवानी,
करतहिँ रह्यो कलोल।
वृद्ध भयो, कछु बनत नाहिं अब,
भेद जिया के खोल।।
रसना, अब हिय से हरि बोल..!
भाँति-भाँति के, स्वाद चखे,
पर नाहिं, प्रेमरस तोल।
मीरा नाची, प्रीति-दिवानी,
परिजन, निन्दा मोल।
रसना, अब हिय से हरि बोल..!
परनिन्दा, मा समय गवायो,
दै ताने, विष घोल।
मित्र, स्वजन सब भये पराए,
जान्यो, दुनिया गोल।।
रसना, अब हिय से हरि बोल..!
पोथी पढ़ि-पढ़ि, दम्भ कियो,
माया देखत, मन डोल।
मरा-मरा कहि, बाल्मीकि तरि,
काहि न देखत, झोल।।
रसना, अब हिय से हरि बोल..!
बीतत रैना, भोर सुहानी,
पल-पल है, अनमोल।
“आशादास” कहात बनै नहिं,
खुलत, ढोल की पोल।।
रसना, अब हिय से हरि बोल..!
##————##————##———–