रसगुल्ले की पीटाई
रसगुल्ले की हुई पीटाई।
रबड़ी जी ने शिकायत लगाई।।
पकौड़ी जी को खूब हँसी आई।
देख के रसगुल्ले की पीटाई।।
चमचम का सजा दरबार ।
लोगों तक हुआ प्रचार।।
रबड़ी जी दरबार में आई।
संग अपनी समस्या लाई।।
रसगुल्ला दरबार में आया ।
थी जकड़ी जंजीर में काया।।
पहले सबसे कचौड़ी आई।
उसने अपनी बात सुनाई।।
चमचम को बात समझ में आई।
सबकी जड़ थी महंगाई।।
कड़ाही ने भी अपनी बात सुनाई।
रसगुल्ले की फिर मानो शामत अाई।।
रसगुल्ले को मिलते ही सजा।
सिंघाड़े को आया खूब मजा।।
सिंघाड़े की अब सज गयी दुकान।
चारों ओर उसका गुणगान ।।
यही तो है सच्चाई मेरे भाई।
है होती किसी की जग हँसाई।
और कोई खाता रसमलाई।।