रश्मि की स्मृति सुनहरी शेष को…
रश्मि की स्मृति सुनहरी शेष को,
भग्न आशाओं के हर अवशेष को,
रिक्त करना है गगन मस्तिष्क से,
दाह करना है समस्त विराग को,
गूँथना है बिखरते अनुराग को…
मौन रूदन में छलावा मीत का,
चित्र धोना है कठोर अतीत का,
ला पिरोना है समय के तार में,
साज से रूठे हुए हर राग को,
गूँथना है बिखरते अनुराग को…
यह निशा नहला रही, बहला रही,
चाँद की शीतल किरण दहका रही,
किन्तु नयनों के सनेही अश्रु से,
है बुझाना रश्मियों की आग को,
गूँथना है बिखरते अनुराग को…
——————————————-
सोमनाथ शुक्ल
इलाहाबाद