*रवि प्रकाश की हिंदी गजलें* शीर्षक से एक पुस्तक प्रकाशित करन
रवि प्रकाश की हिंदी गजलें शीर्षक से एक पुस्तक प्रकाशित करने का विचार बन रहा है। एक सौ से अधिक हिंदी गजलें इसमें रहेंगी। पुस्तक की प्रस्तावना निम्नवत रखने का विचार है:-
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हिंदी गजल से हमारा अभिप्राय
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क्षमा कीजिए, हमें उर्दू नहीं आती। उर्दू को फारसी लिपि के स्थान पर जो लोग देवनागरी लिपि में लिखते हैं, वह यथा स्थान नुक्ते का प्रयोग करते हैं। उन्हें मालूम है कि किस शब्द में किस स्थान पर नुक्ता लगाना है।
हमने हिंदी भाषा इंटर तक पढ़ी। वर्णमाला में ज तो हमने पढ़ा लेकिन नुक्ता लगा हुआ ज कहीं नहीं था। क तो था, लेकिन नुक्ता लगा हुआ क नहीं था।
हम जब हिंदी में लिखते हैं तो बहुत बार हमें यह भी पता नहीं होता कि जो शब्द हम प्रवाह में आकर प्रयोग में ला रहे हैं, वह हिंदी के न होकर मूलतः उर्दू के शब्द हैं। नुक्ते के आधार पर जब कोई उर्दू विद्वान हमारे एक पृष्ठ के लेखन में चार-पॉंच दोष बताते हैं, तब जाकर हमें उन शब्दों का उर्दू का होना पता चलता है।
बोलचाल की भाषा में उर्दू के शब्द हमारे प्रवाह में रच-बस गए हैं, वह अलग नहीं किये जा सकते। और अगर हमने उन्हें यत्नपूर्वक अलग करने का काम किया तो प्रवाह टूटने लगेगा। प्रवाह- जो लेखन का प्राण होता है।
हिंदी गजल और उर्दू गजल में कोई अंतर नहीं है। वही शेर हैं। वही रदीफ और काफिया है। विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। हर प्रकार के भाव गजल में- हिंदी और उर्दू गजल में- व्यक्त किए जा सकते हैं।
आशा है उर्दू के विद्वान नुक्ता प्रयोग न करने के पीछे हमारी विवशता को महसूस करेंगे और इस आधार पर कि हम उर्दू के शब्द बिना नुक्ते लगाए हुए प्रयोग में लाए हैं, हमारी रचना के मूल्यांकन में कमी नहीं होने देंगे।
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रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451