फाग
हवा आज फिर दस्तक दे बाहर बुला रही है
तुम्हारी रूह फिर हमें आवाज़ लगा रही है |
बयार फिर तिनकों को मेरे पास गिरा रही है
लम्हों को समेटते हुए चूड़ियाँ खनखना रही हैं |
कुछ अबीर कुछ गुलाल के कतरे , रंग के छीटें
रंग दूब का बदल गए थे तुम्हारे हाथों से गिर
चौखट भी मुस्कुराती थी सुन पदचाप पुरानी
हर तिनके में छिपी है कोई याद सुहानी |
मुट्ठी में भर गुलाल , न हंसते न मुस्कुराते
चुपके से लगा गुलाल , बस आँखों से सब कह जाते |
फागुन का पक्का रंग कुछ लम्हों पर चढ़ गया है
रूह का रोम रोम उस रंग में रंग गया है |
जुदा हो गए हैं रंग रुखसार के ज़िन्दगी से मगर
गुलाल लगाएं ज़रा आओ हम भी तुम्हारी रूह पर |
कतरे लाल गुलाल के छिड़क दो न सूने ललाट पर तुम
एक सदी हुई , सुना दो न फाग की वही पुरानी धुन |
सोंधी सी खुशबू तुम्हारे आने की हर कोना महका रही है
तुम्हारी रूह भी संग हमारे, लम्हों को जीना चाह रही है |
समेट लेते हैं रूह को तुम्हारी ,अपनी पलकों के साए तले
आओ हम भी उसी पगडंडी पर तुम्हारी रूह के संग चलें |
…………………………..डॉ सीमा ( कॉपीराइट )