रमेशराज के हास्य बालगीत
|| रामलीला ||
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बंदर काका हनुमान थे
बने रामलीला में
दिखा रहे थे वहां दहन के
खुब काम लीला में।
जलती हुई पूंछ से उनकी
छूटा एक पटाखा
चारों खाने चित्त गिर गये
फौरन बंदर काका।
मारे डर के थर-थर कांपे
फिर तो काका बंदर,
साथी-संगी उन्हें ले गए
तुरत मंच से अंदर।
+रमेशराज
|| बन्दर मामा ||
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बन्दर मामा पहन पजामा
इन्टरब्यू को आये
इन्टरब्यू में सारे उत्तर
गलत-गलत बतलाये।
ऑफीसर भालू ने पूछा
क्या होती ‘हैरानी’
बन्दर बोला- मैं हूँ ‘राजा’
बन्दरिया ‘है रानी’।
भालू बोला ओ राजाजी
भाग यहाँ से जाओ
तुम्हें न ‘बाबू’ रख पाऊँगा
घर पर मौज मनाओ।
+रमेशराज
|| बंदर की दाढ़ी ||
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चुपके-चुपके देख रहा था
छत से बूढ़ा बंदर
दाढ़ी बना रहे हैं काका
बैठे घर के अंदर
उसका जी ललचाया, मैं भी
दाढ़ी आज बनाऊँ
काका की ही तरह गाल पर
साबुन खूब लगाऊँ |
मार झपट्टा काका जी से
छीन ले गया रेजर
लगा बनाने दाढ़ी बंदर
झट से छत के ऊपर।
गाल कटा बेचारे का तो
चीखा औ’ चिल्लाया
दौड़ो-दौड़ो मुझे बचाओ
उसने शोर मचाया।
+रमेशराज
।। मोटूराम।।
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सीधे-सादे भोले-भाले
तनिक न नटखट मोटूराम।
मिलजुल के रहते हैं सबसे
करें न खटपट मोटूराम।
धीरे-धीरे चलें राह में
भरें न सरपट मोटूराम।
बर्फी,लड्डू, और जलेबी
खाते झटपट मोटूराम।
ढेरों पानी पी जाते फिर
गट-गट, गट-गट मोटूराम।
बड़ी तोंद से मुश्किल आती
लेते करवट मोटूराम।
-रमेशराज
|| मिली नहीं ससुराल ||
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पत्नी को लेने चले मेंढ़कजी ससुराल
सर से अपने बांधकर एक हरा रूमाल
एक हरा रूमाल, हाथ में लेकर डंडा
दिखने में लगते जैसा मथुरा के पंड़ा,
मथुरा से लेकर टिकिट बम्बई का तत्काल,
बैठ फन्टियर मेल में पहुंच गये भोपाल,
पहुंच गए भोपाल सोचें कहां आ गए?
मिली नहीं ससुराल बिचारे चक्कर खा गए।
+रमेशराज
|| तोंद ||
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किसी-किसी की छोटी तोंद,
और किसी की मोटी तोंद।
किसी-किसी की तोंद निराली,
खाओ जितना, उतनी खाली।
लाला जब रसगुल्ले खाते,
भरी तोंद पर हाथ फिराते।
चौबे जी की ऐसी तोंद,
वे हंसते तो हंसती तोंद।
तोंद दिखाये बड़े कमाल,
चट कर जाती सारा माल।
काका जब खर्राटे भरते,
तोंद को ऊपर-नीचे करते।
तोंद बढ़े तो मुश्किल चलना,
पहन के कपड़े, उन्हें बदलना।
रिक्शे वाला नहीं बिठाये,
देख तोंद को झट डर जाये।
बड़ी तोंद की महिमा न्यारी
तीन सीट पर एक सवारी।
+रमेशराज
।। जोकर।।
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सबको खूब हंसाता जोकर
सूरत अजब बनाता जोकर।
ठुमक-ठुमक औ’ नाच-नाच कर
डमरू-बीन बजाता जोकर।
सिक्का एक चार में बदले
दो को बीस बनाता जोकर।
आओ-आओ सर्कस देखो
यह आवाज लगाता जोकर।
-रमेशराज
।। मूँछें ।।
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तरह-तरह की होती मूँछें
मोटी लम्बी चौड़ी मूँछें।
किसी-किसी की काली मूँछें
और किसी की भूरी मूँछें।
होली पर बच्चों के दिखतीं
रंग-विरंगी नकली मूँछें।
कोई रखता इन्हें तानकर
और किसी की नीची मूँछें।
किसी-किसी के दिख जाती हैं
अब भी हिटलर जैसी मूँछें।
कैसी लगती तब महिलाएं
जब उनके भी होती मूँछें!
कोई मन ही मन मुस्काता
रख तलवार सरीखी मूँछें।
-रमेशराज
।। जोकर ।।
सबको खूब हँसाता जोकर
गर्दभ-स्वर में गाता जोकर।
ताक धिनाधिन ताता थइया
सबको नाच दिखाता जोकर।
छह फुट की दाढ़ी के ऊपर
लम्बी मूँछ लगाता जोकर।
लुढ़क-लुढ़क कर खूब मंच पर
कलाबाजियाँ खाता जोकर।
खड़िया गेरू से मुँह रँगकर
सूरत अजब बनाता जोकर।
एक साथ में सौ पाजामे
पहन मंच पर आता जोकर।
सब रह जाते हक्के-बक्के
दो फुट तोंद फुलाता जोकर।
-रमेशराज
।। तोंद ।।
ढेरों लड्डू खाती तोंद
पर भूखी रह जाती तोंद।
जब कोई खर्राटे भरता
कत्थक नृत्य दिखाती तोंद।
गुब्बारे जैसी तन जाती
जब पूरी भर जाती तोंद।
लोटपोट हों सभी देखकर
जोकर-सी इठलाती तोंद।
-रमेशराज
।। अप्रिल-फूल मनायें ।।
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करें शरारत लेकिन ढँग से
कोई जिसका बुरा न माने
ठेस न किसी सु-मन को पहुँचे
भूल न हो जाये अन्जाने
कोयल जैसा मधुर बोलकर
यारो हम सब हँसे-हँसायें
आओ अप्रिल फूल बनायें।
झूठ-मूठ को हम रोते हैं
आओ धरती पर सोते हैं
पानी के चिपकाकर आँसू
थोड़ा-सा दुःखमय होते हैं
देख हमारी रोनी सूरत
अम्मा-दादी दौड़ी आयें
आओ अप्रिल-फूल मनायें।
खाने बैठें जब पापा तो
फौरन सी-सी,सी-सी बोलें
मम्मी भागी-भागी आयें
चीनी का झट डब्बा खोलें
आलू की सब्जी में आओ
थोड़ी-सी अब मिर्च मिलायें
आओ अप्रिल-फूल मनाएँ।
-रमेशराज
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+रमेशराज, 15/109, ईसानगर , अलीगढ़-202001