रमेशराज के मौसमविशेष के बालगीत
|| जाड़ा ||
——————————-
अब जर्सी स्वेटर की बातें
होती हैं मफलर की बातें।
सबको चाँटे जड़ती जातीं
अब तो शीत-लहर की बातें।
घर-घर में चर्चा कम्बल की
चाय और हीटर की बातें।
आज सभी के मन में उभरें
बस कुहरे के डर की बातें।
सिर्फ अलाव जलाये रखिए
मत करिए कूलर की बातें।
+रमेशराज
|| जाड़ा ||
———————–
रोज आजकल लिखने बैठे
कुहरे की कविताएँ जाड़ा,
उसमें लाता शीतलहर की
नित नूतन उपमाएँ जाड़ा।
कुल्फी लस्सी वर्षा बादल
लूओं की बातें छूटीं,
स्वेटर कोट और कम्बल की
हर दिन कहे कथाएँ जाड़ा।
किस्से लाया गली-मुहल्ले
मीठी-मीठी गर्म धूप के
आज अँगीठी औ’ अलाव सँग
करने लगा सभाएँ जाड़ा।
+रमेशराज
|| गर्मी ||
————————-
आये अब गर्मी के किस्से
लू अंधड़ आँधी के किस्से।
चाय और कॉफी को छोड़ो
अब अच्छे कुल्फी के किस्से।
मन को लगें सुहाने अब तो
खूरबूजे ककड़ी के किस्से।
अब तो आजाते अधरों पर
शीतल जल लस्सी के किस्से।
खूब लगाओ घंटों डुबकी
लगते भले नदी के किस्से।
+रमेशराज
|| बादल ||
————————————–
हौले-हौले, कभी घुमड़कर
काले-भूरे आयें बादल
बच्चों की खातिर लिख देते
बूँदों की कविताएँ बादल।
बच्चे जब लू में तपते हैं,
सूरज आग उगल जाता है
बच्चों से शीतल छाया की
कहते मधुर कथाएँ बादल।
बच्चों को अति अच्छे लगते
हरे खेत औ’ फूल खिले
जन्नत-सी सोगातें भू पर
हर सावन में लायें बादल।
कंचे-कौड़ी की शक्लों में
भूरे-भूरे प्यारे-प्यारे
कभी-कभी तो ओले अनगिन
बच्चों को दे जायें बादल।
+रमेशराज
|| लो आये जाड़े राजाजी ||
———————————-
ऊनी कम्बल का अब मौसम
गरम-गरम जल का अब मौसम।
थर-थर काँपें गात सभी के
सर्दी के छल का अब मौसम।
लो आये जाड़े राजाजी
बीता बादल का अब मौसम।
नहीं मचाती शोर नदी, बस-
कलकल-कलकल का अब मौसम।
कुहरे के सँग लगा घूमने
देखो पल-पल का अब मौसम।
नरम-नरम-सी धूप लगे है
जैसे मखमल का अब मौसम।
+रमेशराज
|| इस तरह जाड़े का स्वागत कीजिए ||
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चाय की चुस्की मजे-से लीजिए
इस तरह जाड़े का स्वागत कीजिए।
अतिथि आये यदि किसी के पास तो
हाथ में कॉफी का प्याला दीजिए।
ता-ता थइया किस तरह ये नाचता
आज कुहरे की अदा पर रीझिए।
सिर्फ स्वेटर से न चलता काम अब
कोट की जल्दी व्यवस्था कीजिए।
अब हवा अच्छी नहीं इसकी लगे
बंद पंखे को तुरत कर दीजिए।
बैठ जाओ अब अलावों के निकट
शीतलहरों पै न गुस्सा कीजिए।
+रमेशराज
|| बादल ||
—————–
करते हैं आयोजित कोई
जिस दिन भी कवि सम्मेलन बादल।
तो धरती पर ले आते हैं
रिमझिम-रिमझिम सावन बादल।
राम-कथा सुनने वर्षा की
निकलें बच्चे घर से बाहर
जोर-जोर से करें गर्जना
बने हुए तब रावन बादल।
आसमान की छटा निराली
देख-देख मन हरषाता है
साँझ हुए फिर लगें दिखाने
इन्द्रधनुष के कंगन बादल।
एक कहानी वही पुरानी
नरसी-भात भरे ज्यों कान्हा
उसी तरह से खूब लुटाते
फिरते बूँदों का धन बादल।
बड़ी निराली तोपें इनकी
पड़ी किसी को कब दिखलायी
जब ओलों के गोले फैंकें
फैंके खूब दनादन बादल।
+रमेशराज
।। जाड़े की देखो शैतानी ।।
——————————-
सबको थर-थर आज कँपाता
अँगीठियों के पास बिठाता
करता है जमकर मनमानी
जाड़े की देखो शैतानी।
लाओ कम्बल और रजाई
इनमें छुपकर बैठो भाई
छोड़ पुरानी सब नादानी
जाड़े की देखो शैतानी।
+रमेशराज
।। सरसों के फूल ।।
——————————-
आयी-आयी ऋतु वसंत की
बोल रहे सरसों के फूल।
पीत-वसन ओढ़े मस्ती में
डोले रहे सरसों के फूल।
चाहे जिधर निकलकर जाओ
छटा निराली खेतों की
नित्य हवा में भीनी खुशबू
घोल रहे सरसों के फूल।
इनकी प्यारी-प्यारी बातें
बड़े प्यार से सुनती हैं
तितली रानी के आगे मन
खोल रहे सरसों के फूल।
लाओ झांझ-मजीरे लाओ
इनको आज बजाओ रे
हम गाते हैं गीत वसंती
बोल रहे सरसों के फूल।
+रमेशराज
|| पतंग ||
—————–
जब नभ में उड़ जाए पतंग,
बादल को छू आए पतंग।
आसमान से जाकर देखो,
जाने क्या बतियाए पतंग।
कबूतरों की तरह हवा में,
कलाबाजियां खाए पतंग।
मोहन संग ले पप्पू-बबलू,
छत पर खड़ा उड़ाए पतंग।
रंग-विरंगी सुन्दर-सुन्दर,
सबके मन को भाए पतंग।
+रमेशराज
|| उई दइया ||
सूरज ने गर्मी फैलायी, उई दइया।
काली-पीली आंधी आयी, उई दइया।।
मार रही लूएं देखो सबको चांटे।
प्यास कंठ की बुझ ना पायी, उई दइया।।
हीटर और अलावों के दिन बीत गये।
पंखे, कूलर पड़े दिखायी, उई दइया।।
आग बरसती अब तो भैया अंबर से।
मौसम है कितना दुखदायी, उई दइया।।
झीलों में पानी का कोई पता नहीं।
लो गर्मी ने नदी सुखायी, उई दइया।।
याद करें अब सब ककड़ी-अंगूरों को।
मूंगफली की बात भुलायी, उई दइया।।
आसमान अब अंगारे बरसाता है।
धूल सभी के सर पर छायी, उई दइया।।
पेड़ और बिजली के खम्भे टूट रहे।
अब आंधी ने धूम मचायी, उई दइया।।
+रमेशराज
|| उई दइया ||
————————–
शीत हवाएं, उई दइया
शोर मचायें, उई दइया।
सब पर अब जाड़े राजा
रौब जमायें, उई दइया।
ता ता थइया कुहरे जी
नाच दिखायें, उई दइया,
पापा की बजती दांती
चाय पिलायें, उई दइया।
रेल सरीखे मुंह सबके
भाप उड़ायें, उई दइया।
थर-थर कांप रहे तन को
धूप लगायें, उई दइया।
बाहर जर्सी बिन स्वेटर
कैसे जायें, उई दइया,
ठंडा पानी? ना ना ना
गर्म पिलायें, उई दइया।
+रमेशराज
।। कमरा नैनीताल हुआ।।
——————————-
कैसा भई कमाल हुआ
मुख सूरज का लाल हुआ।
धूप जलाती है तन को
हर कोई बेहाल हुआ।
कैसे प्यास बुझाएं हम?
दिन अब सूखा ताल हुआ।
धूप चुभे जैसे बर्छी
छाता मानो ढाल हुआ।
कूलर जो आया घर में
कमरा नैनीताल हुआ।
कुल्फी जरा खिलायी तो
तन-मन बड़ा निहाल हुआ।
+रमेशराज
।। गर्मी ।।
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सूरज आंखें लाल दिखाये अब भइया,
काली पीली आंधी लाए अब भइया।
नंगे बदन जरा भी निकलो बाहर तो
धूप तमाचे खूब लगाये अब भइया।
नहीं नहाते जो हफ्तों तक जाड़े में
दिन में दस-दस बार नहाए अब भइया।
ठंडी ठंडी हवा चले कितनी प्यारी
शिमला, नैनीताल सुहाए अब भइया।
पोखर झील हुए रेतीले देखो तो
नदियों में जल नजर न आए अब भइया।
हुई घृणा अब हीटर और अलावों से
पंखा, कूलर सबको भाये अब भइया।
+रमेशराज
।। गर्मी।।
————
धूप अब सबको जलाती बाप रे
आग का नाटक दिखाती बाप रे!
अलगनी पर शर्ट, धोती पेंट तक
चार पल में सूख जाती बाप रे!
पांव को नीचे रखे तो लाल शोले
रेत ऐसे तपतपाती बाप रे!
आती आंधी अब महाआकार लेकर
नित तहलका-सा मचाती बाप रे!
बींधती है हर गली में गर्म लू
बर्छिया जैसे चलाती बाप रे!
+रमेशराज
जाड़े राजा
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ऊनी कंबल का अब मौसम,
गरम-गरम जल का अब मौसम।
थर-थर कांपे गात सभी के,
सर्दी के छल का अब मौसम।
लो आए जाड़े राजाजी,
बीता बादल का अब मौसम।
नहीं मचाती शोर नदी, बस
कलकल-कलकल का अब मौसम।
कोहरे के संग घूम रहा है,
देखो पल-पल का अब मौसम।
नरम-नरम-सी धूप लगे है,
जैसे मखमल का अब मौसम।
+रमेशराज
|| सावन है ||
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मनभावन हरियाली छायी
खेत लगे कितने सुखदायी
कोयल बोले मीठे बोल
सावन आया, सावन आया।
रिमझिम-रिमझिम बादल बरसे
पानी को अब लोग न तरसे
पक्षी करते फिरें किलोल
सावन आया, सावन आया।
कभी इधर से कभी उधर से
घुमड़-घुमड़ बादल के घर से
आये लो बूंदों के टोल
सावन आया, सावन आया।
कहीं फिसल ना जाना भाई
लुढ़कोगे यदि दौड़ लगाई
खोल अरे भई छाता खोल
सावन आया, सावन आया।।
+रमेशराज
।। पतंग ।।
————-
छत पर जब चढ़ जाता रामू,
लेकर डोरा-रील, पतंग।
झटपट-झटपट सरपट भरती,
मील और दो मील पतंग।
आसमान में उड़ती है तो,
लगती जैसे चील पतंग ,
जाते ही नभ में नहीं रहती
बिल्कुल संयमशील पतंग।
चोंच लड़ाती, बातें करती
बनकर एक वकील पतंग |
उतनी ही ऊँची उठ जाती,
लेती जितनी ढील पतंग।
-रमेशराज
।। हुए विवश बादल के आगे ।।
————————————–
बड़ा तेज उमड़ा है बादल
गुस्से में निकला है बादल
अब छुपने को जगह टटोलो
खोलो झट से छाता खोलो।
दइया-दइया इतना पानी
बादल करे खूब मनमानी
साँय-साँय चलती पुरवाई
आई कैसी आफत आई।
ऐसी गिरता मोटा ओला
जैसे किसी तोप का गोला
अपनी-अपनी चाँद बचाओ
लोहे के अब टोप लगाओ।
घर से बाहर चलें जरा-सा
बूँदें जड़तीं कड़ा तमाचा
कड़के बिजली अति डर लागे
हुए विवश बादल के आगे।
-रमेशराज
।। जाड़े-राजा ।।
————————-
पहला राजा था गुस्सैला
छूटे उसको देख पसीना
नंगे बदन रखा करता था
उससे अपनी कभी बनी ना
अब जो राजा जी आए हैं
जाड़ा उनका नाम है।
पहले राजा के शासन में
सूरज भी उद्दण्ड हुआ था
लू मारा करती थी चांटे
आंधी-अंधड़ खूब चला था
जब से ये राजा जी आए
हमें बड़ा आराम है।
कम्बल,कोट, रजाई लाए
स्वेटर जर्सी मफलर भाए
मूंगफली इनकी प्रिय मेवा
खुद भी खायें और खिलायें,
पहला राजा था यदि ककड़ी
ये राजा बादाम है।
चाय और कॉफ़ी है प्यारी
कभी न छूते चुस्की शर्बत
कुहरे का श्वेताम्बर ओढ़े
ये घूमें हैं पर्वत-पर्वत
सबकी तपन शांत करना ही
अब तो इनका काम है।
-रमेशराज
।। पतंग ।।
———————-
धीरे-धीरे बढ़ी पतंग
आसमान पर चढ़ी पतंग।
रंगविरंगी कितनी प्यारी
जैसे हो फुलझड़ी पतंग।
आसमान को दिखलाती है
जमकर नित हेकड़ी पतंग।
छोटी-सी है देखो फिर भी
रखती हिम्मत बड़ी पतंग।
-रमेशराज
।। उई दइया ।।
————————-
जाड़ा आया उई दइया
कुहरा लाया उई दइया।
लो जाड़े ने आकर अब
रोब जमाया, उई दइया।
तड़-तड़ बजती दाँती
कांपे काया, उई दइया।
हीटर और अलावों ने
प्यार जताया, उई दइया।
शीतलहर की अब देखो
फैलो माया, उई दइया।
-रमेशराज
।। सावन आया।।
—————————-
मन-भावन हरियाली छाई
खेत लगें कितने सुखदाई?
कोयल बोले मीठे बोल-
सावन आया।
रिम-झिम रिमझिम बादल बरसें
पानी को हम आज न तरसें
पंछी करते खूब किलोल-
सावन आया।
कभी इधर से, कभी उधर से
घुमड़ घुमड़ बादल के घर से
दीख रहे बूंदों के टोल-
सावन आया।
कहीं फिसल मत जाना भाई
लुढ़कोगे जो दौड़ लगाई
खोल अरे भाई छाता खोल-
सावन आया।
-रमेशराज
।। ठंडी है अब बहुत मसूरी ।।
———————————–
मौसम गूंगा औ’ बहरा है,
चारों और सिर्फ कुहरा है।
नदियों में बस बर्फ जमी है,
पानी की यहां बहुत कमी है।
जब से बरखा बुढ़ियायी है,
जाड़े की चिट्ठी आयी है।
चाय और काफी पीता हूं
तब जाकर के मैं जीता हूं।
अंगीठियां के रोज सहारे,
अपने दिन कटते हैं प्यारे।
नई रजाई भरवाई है,
जाड़े की चिट्ठी आई है।
एक स्वेटर लेते आना,
मफलर भी तुम भूल न जाना।
ठंडी है अब बहुत मसूरी,
सो कम्बल है बड़ा जरूरी।
हवा बहुत ही दुखदायी है,
जाड़े की चिट्ठी आई है
-रमेशराज
।। काले बादल।।
घर-आंगन में धूम –धड़ाके
छोड़ रहे नभ-बीच पटाखे
इनके घर है आज दिवाली
बजा रहे ये जम के ताली
जब से आये काले बादल
नभ पै छाये काले बादल।
हाथी बनकर, घोड़ा बनकर
चलते शेर सरीखे तनकर
सूरज दादा इनसे डरते
डर के मारे छुपते फिरते
जब से आये काले बादल
नभ पै छाये काले बादल।
काले-काले कम्बल ओढ़े
बूंदों के तल रहे पकोड़े
फैंक रहे हैं ठंड ओले
जैसे दाग रहे हों गोले
जब से आये काले बादल
नभ पै छाये काले बादल।
-रमेशराज
।। जाड़ा आया।।
————————
गर्मी का जादू टूटा
नाता लस्सी से छूटा।
सूरज की महिमा न्यारी
धूप लगे प्यारी-प्यारी।
मौसम कुहरे का छाया
जाड़ा आया।।
दादी-दादा कांप रहे
अब हीटर पर ताप रहे।
ऐसी चलती शीत लहर
काया कांपे थर-थर-थर।
अब सब को कम्बल भाया
जाड़ा आया।
प्यारी-प्यारी भली-भली
सबको लगती मूँगफली।
हर कोई ये ही गाये
चाय और कॉफी भाये।
फसलों पर पाला छाया
जाड़ा आया।
-रमेशराज
।। मस्ती की ऋतु आई रे।।
——————————-
कोयल कूके नाचे मोर
गौरइया करती है शोर
झूम रहे है अब मस्ती में
तोता बुलबुल और चकोर
फूल खिले हर ओर धरा पर
महँक रही अमराई रे।
मस्ती की ऋतु आई रे।
सरसों ने पीताम्बर ओढ़ा
मटक रही है खूब मटर
बैठा हुआ चने का दाना
हरे-हरे थैलों के अन्दर
जौ के साथ-साथ छाई है
गेंहू पर तरुणाई रे
मस्ती की ऋतु आई रे!
धरती सजी हुई दुल्हन-सी
फूलों की अब ओढ़ चुनरिया
लाने लगा गर्म धाराएं
बहती हुई धूप का दरिया
फागुन की चर्चाएं लेकर
आती अब पछुवाई रे
मस्ती की ऋतु आई रे!
-रमेशराज
।। जाड़े की ऋतु ।।
धरती के फूलों ने पहने
कपड़े नये-नये ,
धूमधडाके कर के बादल
जाने किधर गये।
नदियों ने इतराना छोड़ा
मन्दिम गति आयी
और हवा ने राह आजकल
बदली पुरवाई।
काले कजरारे मेघों का
टूटा सम्मोहन,
अब तो लगती भली गुनगुनी
धूप गली-आँगन।
धीरे-धीरे अब तन-मन से
जाड़ा बतियाता,
लस्सी छोड़ जुड़ा अब सबका
कॉफी से नाता।
मूँगफली की होती है अब
चर्चा गली-गली
ऋतु जाड़े की कोट रजाई
ले कम्बल निकली।
-रमेशराज
।। मूँगफली।।
———————-
जी ललचाये मूँगफली
सबको भाये मूँगफली।
लौटे पापा जब घर को
सँग में लाये मूँगफली।
जब से आये जाड़े जी
रंग जमाये मूँगफली।
फेरीवाला ठेले पर
चले सजाये मूँगफली।
मैं इस मौसम की रानी
अब चिल्लाये मूँगफली।
-रमेशराज
।। अंगूर ।।
—————–
लो फिर से आये अंगूर
सबके मन भाये अंगूर।
ज्यों रसगुल्ले शहद भरे
ऐसे अब पाये अंगूर।
भूल न पाया इनका स्वाद
जिसने भी खाये अंगूर।
फेरीवाला सजा ढकेल
अब मीठे लाये अंगूर।
हीरे मोती जैसा गोल
गीत यही गाये अंगूर।
-रमेशराज
।। आ गये ऋतुराज लो।।
———————————-
सरसों ने ओढ़ लिये पीत वसन
जाड़े का टूट गया सम्मोहन
पेड़ों पै फूलों के ताज लो
आ गये ऋतु राज लो।
चहुँदिश अब महँक रही अमराई
अमृत-सा घोल रही पछुवाई
कोयल की गूँजती आवाज लो
आ गये ऋतुराज लो।
खेत-खेत गाते हुए फाग-भजन
फूलों के लाल पीले श्वेत वसन
बेच रहे मौसमी बजाज लो
आ गये ऋतुराज लो।
बीत गये कुहरे-से बर्फीले दिन
अब न चुभे बदनों में जाड़े की पिन
बदल गये मौसमी अंदाज लो
आ गये ऋतुराज लो।
-रमेशराज
।। आ गयी गर्मी ।।
धूप से सब तिलमिलाये, आ गयी गर्मी
आँधियों ने सर उठाये, आ गयी गर्मी।
आज नंगे पाँव चलना है कठिन बेहद
रेत तलवों को जलाये, आ गयी गर्मी।
घर से बाहर अब निकलना हो गया मुश्किल
धूप तन-मन को तपाये, आ गयी गर्मी।
गर्म जल पीने की इच्छा अब मरी सबकी
आज शीतल जल सुहाये, आ गयी गर्मी।
बर्फ की सिल्ली मँगाओ दौड़कर जाओ
कुल्फी-लस्सी आज भाये आग गयी गर्मी।
देख हीटर डर लगे अब, ताप दे संताप
एसी या कूलर सुहाये, आ गयी गर्मी।
-रमेशराज
।। ककड़ी।।
———————————–
लो फिर भइया आयी ककड़ी
सबके मन को भायी ककड़ी।
ओढ़ दुशाला हरे रंग का
मन ही मन मुसकायी ककड़ी।
स्वाद निराला इसका भइया
अब जिसने भी खायी ककड़ी।
खरबूजे तरबूजे दिखते
गर्मी सँग में लायी ककड़ी।
-रमेशराज
।। पिचकारी ।।
———————
चलती सीना तान आजकल पिचकारी
है रंगों की खान आजकल पिचकारी।
जो भी आता इसके आगे, रंग देती
बनी बड़ी शैतान आजकल पिचकारी।
नन्हें-नन्हें हाथों संग हुडदंग करे
है बच्चों की शान आजकल पिचकारी।
सबसे खेलूंगी दिन-भर हंस-हंस होली
लेती मन में ठान आजकल पिचकारी।
-रमेशराज
।। फुलझड़ी।।
————————–
घर-घर दीवाली का उत्सव
धूम मचाती फुलझड़ी।
इसके तन से मोती झड़ते
जब मुस्काती फुलझड़ी।
बच्चे पीट रहे हैं ताली
खूब हँसाती फुलझड़ी।
छम-छम नाच रहीं फिरकनियाँ
रंग दिखाती फुलझड़ी।
दीपक की लौ अगर दिखाओ
झट जल जाती फुलझड़ी।
-रमेशराज
।। बल्ला।।
——————-
करतब खूब दिखाये बल्ला
जब मस्ती में आये बल्ला।
केवल चौक-छक्के मारे
जब गुस्सा दिखलाये बल्ला।
दर्शक पीटें हँस-हँस ताली
जब भी शतक बनाये बल्ला।
बेचारी गेंदो की आफत
इतनी मार लगाये बल्ला।
गेंद हवा से बातें करती
जब जमकर पड़ जाये बल्ला।
नाच-नाच ये खेले क्रिकिट
ऊधम खूब मचाये बल्ला।
-रमेशराज
।। राखी का त्योहार ।।
——————————–
हर कोई गाता-मुस्काता
हँस-हँस के राखी बँधवाता
भइया के मन में है उमड़ा
अब बहना को प्यार
आया राखी का त्योहार।
पिंकी ने रोली-चावल से
तिलक किया राजू के हँस के
अमिता मीना चली घूमने
अब मेला-बाजार,
आया राखी का त्योहार।
अति प्यारी अति सुन्दर-सुन्दर
सबके ही हाँथों पर बँधकर
दिखने में लगती है राखी
रंग-विरंगा हार,
आया राखी का त्योहार।
बबलूजी ने पैंग बढ़ाये
झूला आसमान तक जाये
गीता उस पर झूल रही है
गाती गीत-मल्हार
आया राखी का त्योहार।
-रमेशराज
।। छाता ।।
——————–
है लोगों की शान आजकल छाता
सब चलते हैं तान आजकल छाता।
इन्द्रदेवता भी इसके आगे हारे
करे उन्हें हैरान आजकल छाता।
वर्षा के मौसम में है चलता-फिरता
जैसे एक मकान आजकल छाता।
-रमेशराज
।। बरसते बादल ।।
——————————–
भीग गया घर-द्वार बरसते बादल
ठंडी चले बयार बरसते बादल।
बच्चे नंगे बदन कर रहे हँस-हँस
बूँदों का सत्कार बरसते बादल।
होठों पर सावन के गीतों की लड़ियाँ
गाये सभी मल्हार, बरसते बादल।
हरे पात-फूलों से अब तो कर डाला
पेड़ों का श्रृंगार, बरसते बादल।
इन्द्रधनुष की छटा निराली अब दिखती
जिसको रहे निहार, बरसते बादल।
-रमेशराज
।। भइया क्या कहने।।
रिमझिम बरसें बादल भइया क्या कहने
दिखता है जल ही जल भइया क्या कहने।
गुस्से वाला मुख सूरज का बदल गया
धूप हुई अब कोमल भइया क्या कहने।
पीऊ-पीऊ करे पपीहा बागों में
कू-कू कूके कोयल भइया क्या कहने।
सावन में झट ओढ़ लिया अब ध्रती ने
हरे रंग का आंचल, भइया क्या कहने।
तेज धूप का जादू टूटा, छाँव घनी
मस्ती जंगल-जंगल भइया क्या कहने।
मधुवन बीच सुगन्ध बिखेरें अति प्यारी
खिलकर फूलों के दल, भइया क्या कहने।
-रमेशराज
-बालगीत-
।। नये साल जी ।।
वर्ष पुराना बीत गया है
सँग उसके सब रीत गया है
खुशियों की नूतन सौगातें
अब तो लाये नये साल जी
आये-आये नये साल जी।
त्याग बैर के राग-तराने
मानवता के नये पफसाने
लाये-लाये नये साल जी
आये-आये नये सालजी।
ज्यों खुशबू बसती उपवन में
ऐसे बातें लेकर मन में
चले बसाये नये साल जी
आये-आये नये साल जी।
नये साल का स्वागत करिए
जीवन नवरंगों से भरिए
आज सुहाये नये साल जी
आये-आये नये साल जी।
-रमेशराज
।। कुहरे की चादर ।।
——————————–
शीत लहर चलती दुःखदायी
अब तो सबकी आफत आयी
जाड़े के आते ही मौसम
ओढ़ रहा कुहरे की चादर।
जाड़ा जैसे वायुयान है
नभ में नित भरता उड़ान है
उड़ते-उड़ते आसमान में
छोड़ रहा कुहरे की चादर।
एक-एक से बदला लेगा
लगता अब सबको ढक देगा
जंगल गाँव शहर तक जाड़ा
जोड़ रहा कुहरे की चादर।
अब आया सूरज इठलाता
गर्म-गर्म किरणें फैलाता
अपने साथ धूप को ले अब
तोड़ रहा कुहरे की चादर।
-रमेशराज
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+रमेशराज, 15/109, ईसानगर , अलीगढ़-202001