रमेशराज के पशु-पक्षियों से सम्बधित बाल-गीत
|| बन्दर मामा ||
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बन्दर मामा पहन पजामा
इन्टरब्यू को आये
इन्टरब्यू में सारे उत्तर
गलत-गलत बतलाये।
ऑफीसर भालू ने पूछा
क्या होती ‘हैरानी’
बन्दर बोला- मैं हूँ ‘राजा’
बन्दरिया ‘है रानी’।
भालू बोला ओ राजाजी
भाग यहाँ से जाओ
तुम्हें न ‘बाबू’ रख पाऊँगा
घर पर मौज मनाओ।
+रमेशराज
|| ‘ मेंढ़की ’ ||
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भरे कुलाचें, मारे डुबकी
हो आती पाताल मेंढकी।
हरदम टर्र-टर्र करती है
खूब बजाती गाल मेंढ़की।
फुदक-फुदककर, मटक-मटककर
चले गजब की चाल मेंढ़की।
सावन में जब ताल भरें तो
होती बड़ी निहाल मेंढ़की।
डरकर दूर भाग जाती है
देख बड़ा घडि़याल मेंढकी |
+रमेशराज
|| चिडि़या रानी ||
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हुआ सवेरा, छोड़ घौंसला
आए बच्चे नदिया के तट
फूल खिले हैं सुन्दर-सुन्दर
बिखरे दाने पनघट-पनघट
अब बच्चों को दाना चुगना
सिखा रही है चिडि़या रानी ||
नदी गा रही कल-कल
बदल रहा है मौसम प्रतिपल
गर्म हवा कर दी सूरज ने
अँकुलाहट भर दी सूरज ने,
जल के भीतर डुबकी लेकर
नहा रही है चिडि़या रानी ||
कैसे पंखों को फैलाना
कैसे ऊपर को उठ जाना
कैसे पूंछ हवा को काटे
कैसे उड़ना ले फर्राटे
पंजों पर बल देना कैसे
आगे को चल देना कैसे
बच्चों को अपने सँग उड़ना
सिखा रही है चिडि़या रानी ||
+रमेशराज
|| कोयल ||
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मीठे गीत सुनाती कोयल
बच्चों के मन भाती कोयल।
बौरायें जब आम बाग में
जाने किसे बुलाती कोयल।
मखमल जैसी इसकी काया
फूलों-सी मुस्काती कोयल।
इसको अगर पकड़ना चाहो
फुर से झट उड़ जाती कोयल।
+रमेशराज
।। लोमड़ी ।।
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करे न कुछ भी काम लोमड़ी
बस करती आराम लोमड़ी।
सुन मुंह में ले आती पानी
अंगूरों का नाम लोमड़ी।
भूख लगे तो खा लेती है-
केला, गन्ना, आम लोमड़ी।
बड़े चाव से कुतरा करती-
मूंगफली, बादाम लोमड़ी।
मीठे-मीठे फल खाने का-
देती नहीं छदाम लोमड़ी।
धमकाती है खरगोशें को-
रोज सुबह औ’ शाम लोमड़ी।
जंगल के राजा को लेकिन-
करती रोज सलाम लोमड़ी।
-रमेशराज
।। अपने बूढ़े बंदर काका ।।
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उछलकूद नहीं करते अब,
नहीं कुलाचें भरते अब,
नही किसी को घुड़काते,
सख्त चनों से घबराते,
बस छत पर ही बैठे रहते,
सुबह-शाम अन्दर काका,
अपने बूढ़े बन्दर काका।
जबसे दाँत नुकीले टूटे,
बादामों से नाते छूटे,
केलों पर ही जीते हैं,
या फिर रस ही पीते हैं,
अब तो दूर फेंक देते हैं,
आम, सेब, चुकन्दर काका,
अपने बूढ़े बन्दर काका।
-रमेशराज
।। गधा ।।
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ढेंचू-ढेंचू ढें-ढें ढेंचू
छोड़े कैसी तान गधा ।
केवल अष्ठम स्वर में खोले
जाने क्या मृदगान गधा ।
अपने मालिक का करता है
हरदम ही सम्मान गधा ।
बोझा ढोने में समझे है
देखो अपनी शान गधा ।
चाहे किना भी चल लेता
लाता नहीं थकान गधा ।
बड़े प्रेम से खाया करता
हरी घास औ’ धान गधा ।
रातों को बाड़े में सोता
सुख की चादर तान गधा ।
धोबी राजा के घर जैसे
है सोने को खान गधा ।
-रमेशराज
।। कबूतर।।
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लम्बी भरे उड़ान कबूतर,
यूं तो नन्हीं जान कबूतर।
उड़ने में काटा करता है,
चीलों के भी कान कबूतर।
दाना चुगता, छेड़ा करता,
‘गुटर गूं’ की तान कबूतर।
कलाबाजियों में ये देता,
सबको झट ऐलान कबूतर।
बिल्ली मौसी का रखता है,
होकर चौकस ध्यान कबूतर।
पोखर, झील, नदी, नालों में,
कर आता स्नान कबूतर।
चाहे जितना भी उड़ लेता,
लाता नहीं थकान कबूतर।
उड़ने में कब देखा करता,
आंधी या तूफान कबूतर।
चप्पा-चप्पा आसमान का,
आता झट से छान कबूतर।
-रमेशराज
।। बिल्ली।।
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लम्बी मूंछों वाली बिल्ली
कुछ भूरी कुछ काली बिल्ली,
जब भी चुपके-चुपके आती
देख उसे चुहिया थर्राती,
कहीं छुपाके रख दो भाई
चट कर जाती दूध-मलाई,
दूर-दूर तक यारो झांकें
अंधियारे में इसकी आंखें।
लोटा बेलन तवा गिराती
अम्मा जी को तनिक न भाती,
लम्बी मूंछों वाली बिल्ली
कुछ भूरी कुछ काली बिल्ली।
-रमेशराज
।। हाथी राजा।।
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सूंड हिलाते हाथी राजा
चलते जाते हाथी राजा।
बड़े चाव से खेत-खेत के
गन्ने खाते हाथी राजा।
केले सेब पपीते आलू
चट कर जाते हाथी राजा।
अपनी पीठ लाद बच्चो को
सैर कराते हाथी राजा।
घुसकर ताल नदी पोखर में
मस्त नहाते हाथी राजा।
बड़े बहादुर, पर चींटी से
झट डर जाते हाथी राजा।
-रमेशराज
।। मैना।।
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ओरी प्यारी-प्यारी मैना
सारे जग से न्यारी मैना
तोता राम दूर क्यों बैठे
हमको तनिक बता री मैना।
चुप बैठै हैं मम्मी-दादी
घर में छायी है खामोशी
मम्मी दादी थोड़ा हंस दें
ऐसा गीत सुना री मैंना।
डाली-डाली कोयल कूके
फैला पंख मोरनी नाचे
फुदक-फुदक कर, मटक-मटक कर
तू भी नाच दिखारी मैना।
-रमेशराज
।। खरगोश ।।
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मखमल-सा कोमल खरगोश
नटखट अति चंचल खरगोश।
जैसे एक रुई का टुकड़ा
ज्यों सपफेद बादल खरगोश।
भरे कबड्डी, मारे ठेका
खूब दिखता बल खरगोश।
बड़े मुलायम बालों वाला
फुर्तीला मांसल खरगोश।
नदी किनारे रोज बैठकर
पीता मीठा जल खरगोश।
दूर-दूर तक घूमा करता
जंगल से जंगल खरगोश।
-रमेशराज
।। मेंढ़क ।।
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फुदक-फुदक कर चलता मेंढ़क
जल में खूब उछलता मेंढ़क।
तैराकी में बड़े गजब की
हासिल किये कुशलता मेंढ़क।
हरे लाल पीले मटमैले
कितने रंग बदलता मेंढ़क।
आते ही वर्षा का मौसम
बाहर तुरत निकलता मेंढक।
इसको अगर पकड़ना चाहो
कर से तुरत फिसलता मेंढ़क।
-रमेशराज
।। चिड़िया।।
चींची-चींची गाती चिड़िया।
मीठे गीत सुनाती चिड़िया।
टहनी-टहनी डाल-डाल पर
फुदक-फुदक कर जाती चिड़िया।
घास-फूंस का तिनका-तिनका
बीन-बीन कर लाती चिड़िया।
देती छोटे-छोटे अण्डे
जब घोंसला बनाती चिड़िया।
अपने सब नन्हें बच्चो को
दाना रोज चुगाती चिड़िया।
घने हरे पेड़ों के भीतर
शाम हुए छुप जाती चिड़िया।
उड़ जाती झट आसमान में
अपने पंख पफुलाती चिड़िया।
जाकर नदिया नाले पनघट
जल के बीच नहाती चिड़िया।
इन्द्रधनुष से रंगों वाली
बच्चों के मन भाती चिड़िया।
-रमेशराज
।। कोयल ।।
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मीठे गीत सुनाती कोयल
पंचम स्वर में गाती कोयल।
केवल मीठी बातें करना
हम सबको समझाती कोयल।
काले-काले पंखों वाली
सबके मन को भाती कोयल।
मौसम जब आता वसंत का
मन में अति हरषाती कोयल।
-रमेशराज
।। चूहा ।।
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कुतर-कुतर सब खाता चूहा
खाते नहीं अघाता चूहा।
बिल्ली रानी जब आती तो
देख उसे भाग जाता चूहा।
सोता सदा भूमि के अन्दर
तहखानों का ज्ञाता चूहा।
बड़े मजे से बैठा बिल में
आँखों को चमकाता चूहा।
-रमेशराज
।। पिंजरे में मत डालो इनको ।।
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सबके स्वागत में झुक जाते
अति खुश होते पूँछ हिलाते
करते सबको रोज प्रणाम
तोता जी।
केला-गन्ना खा लेते हैं
औ’ बादाम नुका लेते हैं
बोलें लाओ-लाओ आम
तोता जी।
इनकी चोंच बड़ी मतवाली
पैनी-पैनी बहुत निराली
करते सभी चोंच से काम
तोता जी।
हरी पत्तियों में छुप जाते
तो बिल्कुल भी नजर न आते
डालों पर करते आराम
तोता जी।
पिंजरे में मत डालो इनको
बाहर अरे निकालो इनको
उड़ना चाह रहे अविराम
तोता जी।
-रमेशराज
।। बंदर ।।
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घुड़की खूब दिखाता बंदर
सब पर रौव जमाता बंदर।
बिजली के खम्बों के ऊपर
पकड़ तार चढ़ जाता बंदर।
मूँगफली को फोड़-फोड़कर
बड़े मजे से खाता बंदर।
छत के ऊपर अगर सुखाओ
ले कपड़े भग जाता बंदर।
झूले डाल-डाल पर झूला
इतराता-इठलाता बंदर।
शैतानी से नटखटपन से
बिल्कुल बाज न आता बंदर।
-रमेशराज
।। कोयल ।।
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मीठी बोली बोले कोयल
कानों में रस घोले कोयल।
मिसरी जैसे शब्द-शब्द को
कान-कान में रोले कोयल।
बुनती है सपने वसंत के
अमराई को तोले कोयल।
हंसती बैठ डाल के ऊपर
भाव लिये अति भोले कोयल।
पाँव फूल-से डाल-डाल पर
रखती हौले-हौले कोयल।
पंख फुलाकर गीत सुनाती
खूब कूकती डोले कोयल।
-रमेशराज
।। बैल ।।
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बँधे हुए घुँघरू पैरों में
कदम ताल पर चलते बैल।
भरें कुलाँचें हरी घास पर
नाचें और उछलते बैल।
रख जूआ अपने काँधों पर
ले हर रोज निकलते बैल।
नित पथरीली भी जमीन का
पल में रूप बदलते बैल।
खेत जोतते करते मेहनत
कड़ी धूप में जलते बैल।
खेतों को फसलों से भरते
बंजर-रूप बदलते बैल।
-रमेशराज
।। बैल ।।
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भोले-भोले सीधे-सादे
मन में लिया सचाई बैल।
हल से करते हैं खेतों की
आकर रोज जुताई बैल ।
पाटे से कर देते समतल
गड्ढे खंदक खाई बैल।
हिल-मिलकर रहते आपस में
जैसे भाई-भाई बैल।
रहट, पैर, ढेंकुली चलाकर
करते नित्य सिंचाई बैल।
ईख पेर कर झट कोल्हू से
देते हमें मिठाई बैल।
गाड़ी में जुतकर किसान की
करते माल-ढुलाई बैल।
+रमेशराज
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+रमेशराज, 15/109, ईसानगर , अलीगढ़-202001