रमेशराज के दस हाइकु गीत
1.कैसे मंजर?
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जुबाँ हमारी
तरल नहीं अब
कैसे मंजर?
प्यारी बातें
सरल नहीं अब
कैसे मंजर?
अहंकार के
बोल अधर पर
नये वार के,
हमने भूले
पाठ सुलह के
सदाचार के ।
सच की बातें
सफल नहीं अब
कैसे मंजर?
+रमेशराज
2. बुरा हाल है
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ये मलाल है
अब पतझर में
डाल-डाल है।
कली-कली का
इस मुकाम पर
बुरा हाल है।
आज न भौंरा
मधुरस पीकर
विहँसे-झूमे,
अब नटखट-सी
भोली तितली
फूल न चूमे।
कब आयेंगे
घन सुख लेकर
यह सवाल है।
+रमेशराज
3. भोर कहाँ है?
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अंधियारे में
अब हर मंजर
भोर कहाँ है?
मुँह फैलाये
चहुँदिश हैं डर
भोर कहाँ है?
मन अन्जाने
परिचय घायल
हम बेगाने,
प्यासे हैं सब
पनघट के तट
नदी मुहाने।
सम्बन्धों पर
पसरा अजगर
भोर कहाँ है?
+रमेशराज
4. विजन हुए सब
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काँकर दूने
प्रेम-डगर पर
पत्थर दूने।
आज घृणा के
अधर –अधर पै
अक्षर दूने।
कैसा हँसना
बिखर रहा हर
मीठा सपना,
बोल प्रेम के,
मगर हृदय में
अन्तर दूने।
वर्तमान में
गठन-संगठन
नहीं ध्यान में,
घर को पा के
विजन हुए सब
बेघर दूने।
+रमेशराज
5. हम ओसामा
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लिये दुनाली
कर में हरदम
मिलें मवाली।
और हो रहीं
चैन-अमन पर
बहसें खाली।
हम ओसामा
किलक रहे हम
कर हंगामा।
मन विस्फोटी
आदत में बम
नीयत काली।
हम जेहादी
बस नफरत के
हम हैं आदी।
धर्म -प्रणाली
अपनी यह बस
तोप सम्हाली।
+रमेशराज
6. मान सखी री!
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मान सखी री!
हम गुलाम अब
अमरीका के।
अपनी साँसें
विवश, नाम अब
अमरीका के।।
हुए हमारे
इन्द्रधनुष सम
मैले सपने,
देश बेचने
निकल पड़े अब
नेता अपने।
तलवे चाटें
सुबह-शाम सब
अमरीका के।।
महँगाई से
नित मन घायल
आँखें बादल,
टूटे घुंघरू
गुमसुम पायल
बातों में बल।
हम तो डूबे
सफल काम अब
अमरीका के।।
+रमेशराज
7. नया दौर है!
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हर कोई है
अब आहत मन
नया दौर है!
खुशियाँ लातीं
मन को सुबकन
नया दौर है!!
मन मैले हैं
हर लिबास पर
है चमकीला,
धोखा देकर
हम सब खुश हैं
युग की लीला।
भोलेपन का
दिखे न दरपन
नया दौर है!!
हर नाते को
दीमक बनकर
छल ने चाटा,
प्यार छीजता
दुःख बढ़ता नित
सुख में घाटा।
दिल की बातें
किन्तु न धड़कन
नया दौर है!!
+रमेशराज
8. चैन कहाँ है?
……………………..
हरियाली पर
पतझर पसरा
चैन कहाँ है?
सद्भावों में
अजगर पसरा
चैन कहाँ है?
भाव हमारे
बनकर उभरे
घाव हमारे,
हमें रुलाते
पल-पल जी-भर
चाव हमारे।
लिये अँधेरा
दिनकर पसरा
चैन कहाँ है?
बढ़ती जाती
देख सुमन-गति
और उदासी,
लिये आम पै
पल-पल मिलता
बौर उदासी।
इक सन्नाटा
मन पर पसरा
चैन कहाँ है!
+रमेशराज
9. किरन सुबह की
……………………….
हम रातों के
सबल तिमिर के
सर काटेंगे।
हम हैं भइया
किरन सुबह की
सुख बाँटेंगे।।
फँसी नाव को
तट पर लाकर
मानेंगे हम,
झुकें न यारो
मन के नव स्वर
ठानेंगे हम।
काँटे जिस पै
पकड़ डाल वह
अब छाँटेंगे।।
बढें अकेले
अलग-थलग हो
अबकी बारी,
कर आये हैं
महासमर तक
हम तैयारी।
हर पापी को
यह जग सुन ले
अब डाँटेंगे।।
+रमेशराज
10. दुख के किस्से
…………………….
घड़े पाप के
अब न भरें, कल-
भर जाने हैं।
जंगल सारे
यह कंटकमय
मर जाने हैं।।
नये सिर से
सम्मति-सहमति
फूल बनेगी,
कथा हमारी
प्रबल भँवर में
कूल बनेगी।
साहस वाले
कब ये मकसद
डर जाने हैं?
वीरानों तक
हम बढ़ते अब
तूफानों तक,
चले आज जो
कल हम पहुँचें
बागानों तक।
दुःख के किस्से
सुखद भोर तक
हर जाने हैं।
+रमेशराज
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रमेशराज, 15/109, ईसानगर, अलीगढ़-202001