रमेशराज के कहमुकरी संरचना में चार मुक्तक
1.
जिसने कहा उजाला दूँगी, सब तक नूर निराला दूँगी
अंधकार जब आया फ़ौरन वही रौशनी मुकर गयी |
हम बोले जब राम उठाले , हमें ज़िन्दगी रही सम्हाले
अब चाहा जब हमने जीना निठुर ज़िंदगी मुकर गयी |
+रमेशराज
2.
मीठी-मीठी बातें कल थीं , उसकी आखें अति चंचल थीं
जिसने कल बोला था साजन , वह सजनी अब मुकर गयी |
कल तक रति की गति थी उसमें , सम्मति थी सहमति थी उसमें
हम भरने सिन्दूर चले तो इस पर ठगनी मुकर गयी |
+रमेशराज
3.
जनहित-जनहित नित चिल्लाकर मुकर गयी
मीठी-मीठी बात बनाकर मुकर गयी ,
पहले तो वादे जनता से खूब किये
फिर सत्ता कुर्सी को पाकर मुकर गयी |
+रमेशराज
4.
कुछ दिन तक आक्रोश जताकर मुकर गयी
अबला थी वो रपट लिखाकर मुकर गयी ,
जज ने पूछा ‘ रेप ‘ किया क्या गुंडों ने ?
इस सवाल पर वह घबराकर मुकर गयी |
+रमेशराज
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15/109 ईसानगर, अलीगढ़