रमेशराज की ‘ गोदान ‘ के पात्रों विषयक मुक्तछंद कविताएँ
-मुक्तछंद-।। सच मानो होरीराम।।
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युग-युग से पीड़ित और शोषित होरीराम
वक्त बहुत बदल चुका है, तुम भी बदलो।
भूख, मजबूरी, शोषण, तिरस्कार, पशुओं सी जिन्दगी–
इनके अलावा कुछ और दिया है तुम्हें
‘होगा वही राम सच राखा’ जैसे सिद्धान्तों ने??
जि़न्दगी की वे सारी परिभाषाएं बदल डालो
जो तुम्हें विरासत में मिली हैं,
या तुमने भूख से लड़ते-लड़ते स्वयं गढ़ ली हैं।
सच मानो होरीराम!
सांप की तरह लिपटा हुआ तुम्हारे गले से ईश्वरवाद
सदियों से तुम्हारा दम घोंटता रहा है/ घोंटता रहेगा,
तुम्हें डसता रहा है/ डसता रहेगा |
इस जहरीले नाग का अन्त तुम्हें करना ही होगा होरीराम!
पेटभर रोटी, बच्चों के कपड़े, बेटी का दहेज
झुनिया की साड़ी, चितकबरी गाय, एक जोड़ी बैल,
इस दमघोंटू माहौल में एक अदद चैन की सास,
जीने के लिये एक अदद सुख ——–
कब तक तरसती रहेगी इस सबको
तुम्हारे साथ तिल-तिल गलती, तुम्हारी धनिया??
इस नयी पीढ़ी की शोषण, भाग्यवाद, अन्धविश्वास
महाजनों, ढोंगी पडि़तों के खिलाफ हुई
बगावत को स्वीकारो होरीराम!
गोबर सही कहता है होरीराम कि-
दातादीन, झिंगुरी सिंह जैसे सूदखोर
तुम्हारे भाग्यवादी सिद्धांत—
कर रहे हैं तुम्हारी खुशियों का अंत
तुम्हें लूट रहे हैं
इस व्यवस्था के महंत |
-रमेशराज
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-मुक्तछंद-
।। होरीराम जुड़ो मेरी कविता के साथ ।।
सुनो होरीराम!
कविता तुम्हें जोड़ेगी
धूमिल और मुक्तिबोध से
कविता में तुम्हें
दिखलाई पड़ेगा दुष्यंत
तुम्हारे कुम्हलाये मन के भीतर
लाता हुआ वंसत।
इस वक्त तुम्हें लगेगा
तुम्हारे हित में है
सारे के सारे शब्द,
तुम्हें सुख-समृद्धि से
जोड़ रही है मेरी भाषा
तुम्हें दुःखदर्दों से
मोड़ रही है मेरी भाषा,
मेरी कविता के साथ जुड़ो होरीराम!
होरीराम जुड़ो मेरी कविता के साथ |
कविता तुम्हें करायेगी
इस बात की पहचान
किसी चालकी के साथ
तुम से छीन लिए गये
तुम्हारे खेत-खलिहान।
किस तरह पहुंच गये
महाजन के बहीखाते तक
तुम्हारे अंगूठे के निशान।
कविता तुम्हें समझायेगी
बिजूका की तरह
खड़े रहे हो तुम
जिन खेतों के बीच
जहां तुमने सही है
चिलचिलाती धूप
भूख और प्यास,
जहां लिखा गया है
तुम्हारे खून-पसीने का इतिहास
जहां तुम्हारी खुर्पियों ने
काटी है घास
वे खेत तुम्हारे हैं
वे खलिहान तुम्हारे हैं।
मेरी कविता के साथ जुड़ो होरीराम!
होरीराम जुड़ो मेरी कविता के साथ |
कविता एक सहेली बन जाएगी
तुम्हारी धनिया के साथ।
कविता लेकर आयी है
तुम्हारे भूखे बच्चों को
चावल-दाल-भात।
कविता
तुम्हारे आदिम घावों को
सहलायेगी
तुम्हारे बेटे गोबर से
शोषण के खिलाफ
आक्रोश से भर जायेगी,
मेरी कविता के साथ जुड़ो होरीराम
होरीराम जुड़ो मेरी कविता के साथ।
-रमेशराज
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-मुक्तछंद-
।। तुम्हारा बेटा गोबर ।।
तुम्हें खुश होना चाहिए धनिया
खुश होना चाहिए तुम्हें धनिया
तुम्हारा बेटा गोबर
अब आवाज़ उठा रहा है
शोषकों के खिलाफ
उसके हाथों में
जमीदारों के हलों की
मूंठ नहीं है
और न उनके खेत काटते हुए हंसिये
अब गोबर के हाथ में
खुर्पीं की जगह ले ली है
आग उगलती भाषा ने
मार्क्स की पुस्तकों ने
कान्ति के झण्डों ने।
तुम्हें खुश होना चाहिए धनिया
तुम्हारा बेटा गोबर
अब हक की लड़ाई लड़ रहा है
तुम्हारे बेटे ने
सेठ उन बहीखातों को
आग में झौंक दिया है
जिन पर होरीराम के
अंगूठों के निशान थे
जिनमें गिरवीं तुम्हारे
बैल और मकान थे।
तुम्हें खुश होना चाहिए धनियां
खुश होना चाहिए तुम्हें धनियां
तुम्हारा बेटा गोबर
अब झिगुरीसिंह, दातादीन को
सलाम नहीं ठोंकता
बल्कि उनकी टोपियां उछालता है
फुटबाल की तरह।
उसके नाम का एक खौफ-सा है
सूदखोरों में।
तुम्हें खुश होना चाहिए धनियां
खुश होना चाहिए तुम्हें धनियां
तुम्हारे बेटे गोबर ने
कल एक बिच्छू का डंक तोड़ दिया
एक सांप का फन कुचल डाला
गांव के बेईमान पंचों की
ज़बान पर ठोंक दिया ताला
तुम्हें खुश होना चाहिए धनियां
खुश होना चाहिए तुम्हें धनियां
तुम्हारा बेटा गोबर
अब बो रहा है गांव में
बीज खुशहाली के
अब वह करेगा
तुम्हारे घर में फैली
ग़रीबी, भुखभरी का अंत
हां हां धनियां
अब वो दिन दूर नहीं
जब तुम्हारा बेटा गोबर
लायेगा वंसत।
-रमेशराज
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Rameshraj, 15/109, isanagar, Aligarh-202001