रमेशराज की एक हज़ल
बोलै मति हमकूँ ठलुआ,
हमतौ चाकी के गलुआ, जै राधे की।
प्रेम-बाँसुरी बजा रहे हम
हमकूँ कहियो मत कलुआ, जै राधे की।
बूँद-बूँद यूँ दिन-भर टपकें
नैना सरकारी नलुआ, जै राधे की।
साली मुस्का ऐसे बोली
जीजा तुम रहे रहलुआ, जै राधे की।
द्यौरानी भी यार जेठ को
होली पै बोलै ‘ललुआ’, जै राधे की।
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