रफ्फू करना
मुस्कान से होठों की रोज रफ्फू करती हूँ,
जिंदगी के गम को मैं थोड़ा थोड़ा,
विश्वास करती हूँ कि जिंदगी मजबूत होगी,
इस मुस्कान के संग रोज थोड़ा थोड़ा।
गम नही उधड़े कभी
इसलिए मुस्कान के बहाने मैं ढूँढती हूँ।
जिंदगी में दर्द न घुल जाए,
किलकारियों के आशियाने ढूँढती हूँ।
रफ्फू क़रतीं हूँ मैं जिंदगी को
रोज अपने विश्वास से थोड़ा थोड़ा।
आस रखती हूँ कि जिंदगी होगी मजबूती
हौसलों और हिम्मत के संग रोज थोड़ा थोड़ा।
दर्द नही तार तार कर दें जिंदगी को
मैं चमत्कार की सदा आशा करती हूँ।
दुआओं पर भरोसा करके
मुहब्ब्त पर मैं विश्वास करती हूँ।
आँखों की नमी को छुपा कर गम को रफ्फू
मैं रोज क़रतीं हूँ,
खुश रहने का दिखावा करके
मैं जिंदगी में रंग भरती हूँ।
इस तरह दर्द को मैं रफ्फू क़रतीं हूँ
रोज थोड़ा थोड़ा।