रफ़्तार ज़िन्दगी की कुछ थम सी गई है
सांसो की धीमी आहट कुछ थम सी गई है।
आंखों की इस नमी को,
बस आंख जानती है।
अनजान है पलकें,
क्या ख़ाक जानती हैं।
ख्वाबों की बस्ती सारी कुछ जल सी गई है।
सांसो की धीमी आहट कुछ थम सी गई है।
मन में है मैल इतना ,
धोए भी न धुलेगा।
रोए बिना ही यह दिल,
कैसे बयां करेगा।
अश्को की झील खारी, कुछ जम सी गई है।
सांसों की धीमी आहट, कुछ थम सी गई है।
कैसे हो यूं तसल्ली,
अंजाम के बिना अब।
रुकना है कब गवारा,
साहिल के बिना अब।
उम्मीद की किरण जो धूमिल सी हो चली है।
सांसो की धीमी आहट कुछ थम सी गई है।
दम तोड़ते ये रिश्ते,
हरदम सिसकते हैं अब।
यूं टूट कर बिखरते ,
शाखों से झरते है अब।
रिश्तों की गर्मी” रेखा “हो नम सी गई है।
सांसो की धीमी आहट कुछ थम सी गई है ।
रफ्तार जिंदगी की कुछ थम सी गई है।