रफ़्तार – ए- ज़िंदगी
रफ़्ता – रफ़्ता ज़िंदगी में हम बढ़ते रहे ,
कभी मसर्रत की फ़िज़ा रही ,
कभी गम के बादल मंडराते रहे ,
लम्हों का जुलूस रवां – दवां रहा ,
कभी बहारों का काफ़िला बढ़ता रहा ,
कभी माहौल – ए – खिज़ाँ में भटकते रहे ,
कभी दिल – ए – बेताब रहा ,
कभी एहसास- ए – सुकुँ रहा ,
कभी ख़याल ओ ख्वाबों से बहलते रहे ,
कभी अपने छूटते फिर नये मरासिम जुड़ते रहे ,
कभी अब्र -ए-ए’तिबार से गुज़रते रहे ,
कभी ज़मीनी हक़ीक़त से दो चार होते रहे।